बिजली विभाग के कर्मचारियों को सस्ती बिजली देने के मामले में 25 फरवरी को अंतिम सुनवाई

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नैनीताल, उत्तराखंड हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश की अध्यक्षता वाली खण्डपीठ ने प्रदेश में बिजली विभाग में तैनात अधिकारियों और कर्मचारियों तथा रिटायर कर्मचारियों को पावर कारपोरेशन द्वारा सस्ती बिजली मुहैया कराए जाने के खिलाफ दायर जनहित याचिका में अब अंतिम सुनवाई की तिथि 25 फरवरी निर्धारित की है।
सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता के अधिवक्ता द्वारा कोर्ट को रिटायर कर्मचारियों को भी बिजली फ्री में देने या न्यूनतम दरों पर मुहैया कराने के बारे में अवगत कराया गया। उनका ये भी कहना था कि ऊर्जा प्रदेश होने के बावजूद उत्तराखंड के कई गांवों में बिजली अभी तक नही पहुंची है जबकि शहरी क्षेत्रों में चोरी की जाती है और इसका बिल आम जनता से वसूल किया जाता है।
मामले की सुनवाई मुख्य न्यायाधीश रमेश रंगनाथन और न्यायमूर्ति आरसी खुल्बे की खण्डपीठ में हुई। मामले के अनुसार देहरादून की आरटीआई क्लब ने जनहित याचिका दायर कर कहा है कि सरकार विद्युत विभाग में तैनात अधिकारियों से एक महीने का बिल मात्र 400 से 500 रुपये एवं अन्य कर्मचारियों से 100 रुपये ले रही है जबकि इनका बिल लाखो में आता है जिसका बोझ सीधे जनता पर पड़ रहा है। याचिकाकर्ता का कहना है कि प्रदेश में कई अधिकारियों के घर बिजली के मीटर तक नहीं लगे हैं, जो लगे भी हैं वे खराब स्थिति में हैं। उदारहण के तौर पर जनरल मैनेजर का 25 माह का बिजली का बिल 4 लाख 20 हजार आया था और उनके बिजली के मीटर की रीडिंग 2005 से 2016 तक नहीं ली गयी । विद्युत कारपोरेशन ने वर्तमान कर्मचारियों के अलावा रिटायर व उनके आश्रितों को भी बिजली मुफ्त में दी है, जिसका सीधा भार आम जनता की जेब पर पड़ रहा है।
याचिकाकर्ता का कहना है कि उत्तराखंड ऊर्जा प्रदेश घोषित है लेकिन यहां हिमाचल प्रदेश से मंहगी बिजली है जबकि वहां बिजली का उत्पादन तक नहीं होता है। याचिकाकर्ता का यह भी कहना है घरों में लगे मीटरों का किराया पावर कारपोरेशन कब का वसूल कर चुका है परन्तु हर माह के बिल के साथ अब भी किराया जुड़कर आता है, जो गलत है जबकि उपभोक्ता उसका किराया कब का दे चुका है।