विदेशी सीख रहे पहाड़ी संस्कृति और ग्राम्य जीवन शैली

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    1930

    उत्तरकाशी। भौतिकवाद के इस युग में जहां हर कोई न‌िजी फायदे तक ही ‌सिमट गया है, वहीं आर्य विहार आश्रम वैदिक सिद्धांतों के सहारे ग्राम्य जीवन व आध्यात्म का मार्ग दिखा रहा है। जिस वजह से देश-विदेश के कई साधक यहां पर गांव के पारंपरिक जीवन का अनुभव कर वैदिक ज्ञान को समझने का प्रयास कर रहे हैं, जिन्हें गुरु गिर‌िधर आदित्य द्वारा कर्म योग व आत्म निर्भरता का गुण सिखाया जा रहा है।

    जिला मुख्यालय से करीब 20 किमी दूर स्थित इस आश्रम में घंटो पूजा-पाठ नहीं होती, बल्क‌ि कर्म को पूजा मानते हुए सादा जीवन जीया जाता है। यही वजह है कि आश्रम के सिद्धांतों से अनजान लोगों से किसी प्रकार का डोनेशन नहीं लिया जाता है। इसके बदले साधक निजी कमाई व आश्रम में चल रहे कुटिर उद्योग से सारा खर्चा चलाते हैं। करीब आधी दुनिया में भटकने के बाद स्विट्जरलैंड के क्लोडियो, जर्मनी की राम्या व इटली की नाडिया को आध्यात्म का सही अर्थ पहाड़ के ग्राम्य जीवन से मिला। इनके जैसे कई अन्य साधक योग साधना के बाद खेती, भवन निर्माण, खाना बनाना, साफ-सफाई आदि कार्य स्वयं ही करते हैं। साधकों द्वारा स्थानीय फूलों, जड़ी-बूटियों व शहद, साबुन, फेश क्रीम आदि बनाकर बेचा जाता है जिसमें स्थानीय ग्रामीण भी सहयोग करते हैं।
    आश्रम से जुड़े हेमंत ध्यानी बताते हैं कि वैदिक काल से ग्राम्य जीवन शैली के लोग हमेशा से प्रकृति से आत्मसात होकर एक आध्यात्मिक जीवन जीते थे, लेकिन आज लोग इस जीवन को भूलने लगे हैं। इसी वजह से हमारे यहां पहाड़ी संस्कृति को संजोते हुए कर्म को महत्व दिया जाता है। पहाड़ी शैली से बना आश्रम इको फ्रैंडली तकनीक से युक्त है। यहां पर फसल को सुरक्षित करने के लिए सोलर फेंसिंग, खाना बनाने के लिए ओखली, चक्की, मिट्टी के चूल्हा आदि का प्रयोग तथा वर्षा जल को संरक्षित करने की व्यवस्था की गई है। कूड़ा निस्तारण के लिए अजैविक कूड़े को ऋषिकेश स्थित ट्रीटमेंट प्लांट में भेजा जाता है। उन्होंने कहा कि अगर गांवों में आधुनिक तकनीक व वैदिक परंपराओं को शामिल कर ग्रामीणों में आत्मनिर्भरता का अहसास जगाया जाए तो उनका जीवन फिर से खुशहाल हो सकता है।