उत्तराखंड के जंगल एक बार फिर भीषण आग के चलते राख हो चुके हैं। लाखों करोड़ों की वन संपदा का नुकसान हो चुका है, कई स्थानों पर जन धन की भी हानि हुई है। सरकारी आंकड़ो के मुताबिक पिछले 12 घण्टे में पूरे प्रदेश में 100 आग की घटनाएं सामने आयी हैं, जबकि 106 हैक्टेयर जंगल जला है जिसमे, 2 लाख से ज्यादा का नुकसान हुआ है। जबकि अप्रैल महीने की शुरूवात से अब तक 657 आग की घटनायें सामने आयी, जिसमे एक हजार हैक्टेयर के करीब जंगल जल कर स्वाहा हो गया। इससे 21 लाख का नुकसान सरकारी आंकड़ों के हिसाब से बताया गया है। पर ये आंकड़े कही न कहीं कम ही दिखायी दे रहे हैं। जिस हिसाब से पिछले मार्च की शुरुआत से जंगलो में आग धधक रही है, खास तौर पर कुमाऊँ के बागेश्वर के जंगलों में ये, उसे देखते हुए यह आंकड़े कम ही लगते हैं।
बागेश्वर में एक महीने से जंगलों में आग से सबसे ज्यादा नुकसान पहुँचा है। बागेश्वर जिले के कपकोट, गढ़खेत, बैजनाथ और धरमघर रेंज के वनों में हुआ सबसे ज्यादा प्रभावित हैं। अब तक 185 हेक्टेयर क्षेत्र में जंगलों को नुकसान पहुंचा है। जिले में जंगलों में आग लगने की 128 घटनाएं वन विभाग ने दर्ज की हैं। बागेश्वर में आग बुझाने को 180 फायर वाचर, 29 क्रू-स्टेशन भी अलर्ट हैं। काम को शिद्दत से अंजाम देने के लिए वन विभाग ने अधिकारी और कर्मचारियों की छुट्टियां भी 15 जून तक रद्द कर दी हैं। सभी अधिकारी, कर्मचारी अपने स्टेशनों पर बने रहेंगे।
नैनीताल जिले में 8 अप्रैल 2021 तक 144 अग्निकांड की घटनाएं हुई जिसमें 157.890 हेक्टेयर आरक्षित वन क्षेत्र प्रभावित हुआ और 5 घटनाएं वन पंचायत क्षेत्र में हुई जिसमें 4.45 हेक्टेयर वन क्षेत्र प्रभावित हुआ। पूरे नैनीताल जिले में आरक्षित वन क्षेत्र व वन पंचायत क्षेत्र को मिलाकर कुल 149 घटनाएं रिपोर्ट की गई जिसमें 162.340 हेक्टेयर वन क्षेत्र प्रभावित हुआ।
बात गढ़वाल के जिलों की करें तो केदारनाथ और रुद्रप्रयाग वन प्रभाग के जंगल इस बार पूरी तरह से जलकर राख हो गए हैं। पहली बार बांज बुरांस के हरे भरे जंगल भी जले हैं। वैसे तो फायर सीजन 15 फरवरी के बाद शुरू होता है, लेकिन इस बार नवम्बर-दिसंबर और जनवरी जैसे ठंडे महीनों में भी जंगल जले हैं। जंगल जलने से प्राकृतिक वन संपदा के अलावा जंगली जानवरों, औषधियों को नुकसान पहुचा है। साथ ही प्राकृतिक जल स्रोत भी सूख गए हैं। आग का असर अब गर्मियों में अधिक देखने को मिलेगा। बारीश न होने और जंगलों के जलने से जहाँ अत्यधिक गर्मी पड़ेगी, वही पानी की गंभीर समस्या पैदा हो जाएगी। अभी तक रुद्रप्रयाग जिले में वनाग्नि से 5 से अधिक घटनाएं हुई हैं। केदारनाथ और रुद्रप्रयाग वन प्रभाग के लगभग 10 हैक्टेयर से अधिक जंगल जलकर राख हो गए हैं।
चमोली जिले में भी आग का तांडव मचाया हुआ है, अब तक 88.70 हेक्टेयर जंगल आग की भेंट चढ़ चुके हैं। 15 फरवरी से अब तक 93 आग लगने की घटनाएं हो चुकी हैं और आग लगने से 16.25 हेक्टेयर क्षेत्र में जंगल जले हैं ।जंगल जलने से वन विभाग को 3.35लाख का नुकसान हुआ है। उत्तरकाशी जिला भी आग की लपटों के बीच झुलस रहा है,अब तक अपर यमुना वन प्रभाग में कुल 09 घटनाएं हुई है जिनमे कुल 8.8 हेक्टेयर वन जलकर खाक हुआ है ।कुछ ऐसा ही हाल टिहरी जिले का भी है, हालाकि मौसम की करवट लेने और कई जगहों पर हल्की बारिश से आग थोड़ा काबू में दिख रही है पर जैसे ही तापमान बढेगा आग का खतरा फिर बढ़ सकता है ।
नैनीताल हाइकोर्ट ने प्रदेश के जंगलों में लगी आग पर स्वत: संज्ञान लेते हुए राज्य सरकार से पूछा है कि क्या राज्य की भौगोलिक परिस्थितियों को देखते हुए कृत्रिम बारिश कराना संभव है? इस दौरान हाईकोर्ट ने राज्य सरकार को जंगलों की आग से निपटने के लिए स्थायी व्यवस्था करने के साथ ही कई अहम दिशानिर्देश भी दिए। इन निर्देशों के साथ ही मुख्य न्यायाधीश आरएस चौहान एवं न्यायमूर्ति आलोक कुमार वर्मा की खंडपीठ ने स्वत: संज्ञान में ली गई इन द मैटर ऑफ प्रोटेक्शन ऑफ फॉरेस्ट एरिया, फॉरेस्ट हेल्थ एंड वाइल्ड लाइफ की जनहित याचिका को निस्तारित कर दिया है। सुनवाई के दौरान हाईकोर्ट ने सरकार को वन विभाग में खाली पड़े 60 प्रतिशत पदों को छह माह में भरने, ग्राम पंचायतों को मजबूत कर जंगलों की सालभर निगरानी करने एनडीआरएफ एसडीआरएफ को बजट मुहैया कराने, आग बुझाने में हेलिकॉप्टर का इस्तेमाल करने तथा जंगलों की आग को दो सप्ताह में बुझाने के निर्देश दिए हैं। हाईकोर्ट ने इन निर्देशों को तत्काल लागू करने के लिए कहा है।