चार सालों से परिनियमावली की बाट जोह रहा तकनीकी विश्वविद्यालय

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उत्तराखंड सरकार लगातार शिक्षा की गुणवत्ता को बढ़ाने के दावे तो करती रही है, लेकिन हकीकत की जमीन पर सभी दावे और वादे धूल फांकते दिखाई देते हैं। इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि चार साल से उत्तराखंड टेक्निकल यूनिवर्सिटी (यूटीयू) की परिनियमावली शासन में अटकी है। शासन की इस सुस्ती के चलते यूनिवर्सिटी में तमाम अव्यवस्थाएं फैली हैं, इस कारण यूनिवर्सिटी की पूरी कार्यप्रणाली बेहाल हैं।

यूनिवर्सिटी में कर्मचारियों को भारी टोटा है, अधिकारियों की गिनती भी नाम की है। आलम यह है कि यूनिवर्सिटी में नाम मात्र के अधिकारी ही काम काज को संभाल रहे हैं। दरअसल यूनिवर्सिटी स्थापना के वक्त यूनिवर्सिटी का एक्ट तो तैयार कर दिया गया, लेकिन परिनियमावली तय न होने के कारण एक्ट लागू करने में भी परेशानियां आ रही है। विशेषज्ञों की मानें तो यूनिवर्सिटी का एक्ट जहां नीति निर्देशक का काम करता है, वहीं एक्ट काम कैसे करेगा यह परिनियमावली तय करती है। इसके अलावा यूटीयू में अभी तक केवल वाइस चांसलर, रजिस्ट्रार और फाइनेंस कंट्रोलर ही नियुक्त हो पाए हैं। जब तक परिनियमावली तय नहीं होगी अन्य पदों पर नियुक्ति संभव नहीं होगी। परिनियमावली के न होने से यूनिवर्सिटी के आंतरिक कार्यो में बाधा आना स्वभाविक है। यूनिवर्सिटी के कुलपति प्रो. पीके गर्ग का कहना है कि यूनिवर्सिटी की ओर से तीन साल पहले ही परिनियमावली तैयार कर शासन को भेज दी गई थी, लेकिन शासन स्तर पर अभी तक इस पर कोई संज्ञान नहीं लिया गया है। परिनियमावली तय हो जाएगी तो यूनिवर्सिटी को आ रही तमाम परेशानियों को दूर किया जा सकेगा।

परिनियमावली नहीं होने से आने वाली दिक्कतें-
– यूनिवर्सिटी के डिपार्टमेंट्स का स्वरूप कैसा हो।
– कॉलेजों को संबद्धता देने का कार्य।
– बोर्ड ऑफ स्टडीज का स्वरुप कैसा हो।
– नई डिग्री या पाठ्यक्रम को कैसा होना चाहिए।
– यूनिवर्सिटी में ग्रुप बी और सी की नियुक्ति प्रक्रिया।
– विभागों को सुविधाओं से संपन्न करना।
– यूनिवर्सिटी में एचओडी और डीन आदि का कार्यकाल।