टिहरी राजवंश की परम्परा गाडू घडी में बद्रीनाथ के लिए राजमहल में निकाला तिल का तेल

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ऋषिकेश, आज से भगवान बद्री विशाल के कपाट खुलने की परम्परा का श्री गणेश हो गया है | सदियों पुरानी गाडू घडी परम्परा के तहत आज टिहरी राज़ परिवार की महिलाओं और अन्य महिलाओं द्वारा हाथों से निकाले तिलों के तेल को घड़ों में भरकर बद्रीनाथ धाम के लिए रवाना किया गया | इसी तेल से 6 मई सुबह 4:15 बजे को कपाट खुलने के बाद अगले 6 महीने भगवान का श्रृंगार और पूजा अर्चना की जायेगी |

परम्पराएं  संस्कृति की संवाहक होती है, और यदि आधुनिकता के इस दौर मे भी ये जीवित है तो आशचर्य होता है। जी हां हम बात कर रहे हैं उत्तराखंड में टिहरी नरेश के नरेंदरनगर स्थित राजमहल की | जहाँ भगवान बद्रीनाथ के श्रृंगार और पूजा के लिए तिल का तेल निकलने की गाडू घडी परम्परा का निर्वहन हो रहा है | पीले वस्त्रो से सजी धजी यह सुहागिन महिलाएं राजमहल मे रानी के साथ, तेल कलश को भरने के लिये तिलों का तेल  निकाल रही है | यह  परमपरा राज परिवार सदियों से निभाता आ रहा है। तेल कलश को भरने के लिये ये महिलाये पूरे दिन बिना कुछ खाए पिए मुह पर पीले रंग का कपडा बांध कर तेल निकालने का काम करती है। ये पूरा काम टिहरी की महारानी और राज परिवार से जुडी महिलाये के साथ सुहागन महिला ह़ी करती है ।

सुबह से ही वर्त रख कर भगवान की सेवा के लिए दूर दराज के छेत्रो से आई ये सभी महिलाएं किसी न किसी रूप से राज महल की इस परम्परा से जुडी हुयी है ,अपने हाथो से तिल को पीस कर उसका तेल निकल कर भगवान बद्री  विशाल को अपनी श्रधा प्रकट कर रही है। उनके द्वारा निकले गए तेल से शीतनिद्रा से जागने के बाद रोज ही भगवान् की मूर्ति की मालिश और अभिषेक किया जायेगा । इस परम्परा से जुड़ कर सभी जन्मो – जन्मो का पुन्य कमा लेती है और अपने को सोभाग्यशाली मानती है ।महल मे शाम को पूजा अर्चना के बाद राज परिवार इस गाडू घडी को बद्रीनाथ से आये डिमर समुदाय के पुजारियों को सौंप कर रवाना करता है,फिर ये गाडू घडी तेल कलश विभिन पंचं प्रयागों से होता हुआ बद्रीनाथ धाम पहुचता है, जहाँ ये साल भर भगवान बद्री विशाल की पूजा अर्चना और सिंगार के काम आएगा।  सदियों से चली आ रही इस परंपरा को टिहरी राज परिवार बखूबी से निभाता चला आ रहा है | मान्यता है कि  टिहरी के राजा को भगवान बद्रीनाथ का बोलता रूप कहा जाता है | लिहाज़ा बद्रीनाथ केदारनाथ मंदिर समिति के पदाधिकारी  भी इसे राज परिवार का भगवान के प्रति समपर्ण मानते है।