हरिद्वार, भाद्रपद मास की शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को श्री गणेश चतुर्थी के नाम से मनाया जाता है। देश भर में गणेश चतुर्थी का त्योहार धूमधाम से मनाया जाता है। इस बार यह पर्व 13 सितम्बर को मनाया जाएगा। ऐसी मान्यता है कि इस दिन विधिपूर्वक भगवान गणेश की पूजा-अर्चना करने से विघ्नों का नाश होता है।
गणेशोत्सव यूं तो महाराष्ट्र में मनाया जाने वाला प्रमुख पर्व है। महाराष्ट्र से लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक द्वारा आरम्भ किया गया यह पर्व अब समूचे देश में मनाया जाने लगा है। गणेशोत्सव के दौरान देश के जिस हिस्से में देखो गणेशोत्सव की धूम दिखाई देती है।
पं. देवेन्द्र शुक्ल शास्त्री के अनुसार यूं तो भगवान का अजन्मा कहा गया है। फिर भी भगवान लीला रचने के लिए अवतरित होते हैं और उनके इसी अवतरण को हम जन्मोत्सव का रूप दे देते हैं। बताया कि भगवान गणेश का जन्म दोपहर में हुआ था, इसलिए इनकी पूजा दोपहर में करना श्रेयस्कर होता है। वैसे भगवान की पूजा कभी भी की जा सकती है। बताया कि चतुर्थी के दिन पूजा के लिए मध्याह्न का समय सर्वश्रेष्ठ माना गया है।
इस बार पूजा का मुहूर्त दोपहर 12 बजे से रात 12 बजे तक है। बताया कि गणेश पूजन के लिए चतुर्थी के दिन प्रातः गणेश जी की प्रतिमा स्थापित कर षोडशोपचार विधि से उनका पूजन करें। स्थापित की जाने वाली मूर्ति मिट्टी या किसी भी धातु की हो सकती है। केवल गणेशोत्सव के लिए ही मूर्ति स्थापना के लिए मिट्टी की मूर्ति की उत्तम बताई गई है। बताया कि पूजन के बाद चंद्रमा को अर्घ्य देकर ब्राह्मणों को भोजन आदि कराने के साथ दक्षिणा देते हैं।
बताया कि भगवान गणेश को मोदक व लड्डू सर्वाधिक प्रिय पदार्थ हैं। इसलिए मोदक व लड्डू भगवान को इस दिन समर्पित करना चाहिए। उत्सव समाप्ति के पश्चात मूर्ति को किसी पवित्र नदी, तालाब या पोखर में विसर्जित कर देना चाहिए।