ऋषीकेश मे गंगा के तट हमेशा ही विदेशियों को अपनी और खींचते हैं। यही कारण है यहाँ साल भर बड़ी संख्या मे देसी-विदेशी सैलानी आते रहते हैं। योग और अध्यात्म मे डूबे इन लोगों पर गंगा के प्रति एक विशेष लगाव देखने को मिलता है। लेकिन लगातार गंगा में बढ़ते प्रदुषण के कारण आज गंगा नदी अपने ही घर में मैली होती जा रही है जिससे लोगों की आस्था पर भी ठेस पहुंच रही है। अब एक बार फिर गंगा को स्वचछ बनाने के लिए गंगा दशहरा के मौके पर पर्यावरण विद, संत-समाज की आवाज उठती दिखाई दे रही है। देवप्रयाग में पहाड़ों से उतरकर गंगा ऋषिकेश में शांत रूप में बहती हुई मैदानों का रूख करती है। अपने इस सफर में कई गंदे नाले और शहर की आबादी का बोझ गंगा के जल पर साफ देखा जा सकता है। हालात इतने बिगड़ गए हैं कि हाईकोर्ट को मां गंगा को बचाने के लिए जीवित मानव का दर्जा देना पड़ा। इसके बाद इसकी सुरक्षा के लिए एक कानून बना, लेकिन जन जागरूकता की कमी लगातार आस्था की इस धारा को अपवित्र करती जा रही है। जिस को एक बार फिर निर्मल और स्वच्छ बनाने के लिए लोगों की आवाज उठनी शुरू हो गयी है।
गंगा दशहरा के मौके पर अनेक धर्मगुरुओं और गंगा प्रेमियों ने लोगों से गंगा के प्रति जागरूक होने की बात कही। भले ही केंद्र सकरार ने गंगा के लिए कई योजनाओं को खड़ा किया हो लेकिन अभी भी गंगा की तस्वीर ज्यूँ की त्यूं बनी हुयी है। केंद्र सरकार की नमामि गंगे प्रोजेक्ट भी उन्ही योजनाओं में से एक है जिसके अंतर्गत सरकार गंगा को स्वतच्छ और निर्मल बनाये जाने के लिए प्रयास करती जा रही है। तो वहीँ ऋषिकेश पहुचे केंद्रीय स्वच्छता एवं पेयजल मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर का कहना है की “स्वच्छ गंगा के लिए प्रदेश सरकार और केंद्र सरकार मिलकर काम कर रही है ,और जल्द ही गंगा के किनारे बसे सारे घाटों को साफ़ और प्रदुषण मुक्त किया जायेगा।”
ऋषिकेश देवभूमि का प्रवेश द्वार है जहां साल भर मां गंगा में स्नान करने के लिए लाखों की संख्या में श्रद्धालु देश विदेश से पहुंचते हैं। ऐसे में गंगा में बढ़ते प्रदूषण को लेकर उन सब की आस्था पर भी चोट पहुंचती है। जरूरत है तो समाज में जन जागरूकता फैलाने की जिससे आने वाले दिनों में गंगा स्वच्छ निर्मल होकर बहने लगे।