(हरिद्वार) कोरोना महामारी भले ही लोगों के लिए अभिशाप बन गई हो, लेकिन इसकी रोकथाम के लिए देश में जारी लॉक डाउन पर्यावरण के लिए वरदान साबित हुआ है। शहरों की आबोहवा शुद्ध हुई है, वहीं नदियों की सेहत में भी काफी सुधार हुआ है। इसका एक नमूना गंगाजल में देखा जा सकता है। जिस गंगा मां को स्वच्छ और निर्मल बनाने के लिए सरकार की सारी कोशिश फेल हो गईं, उसे डेढ़ महीने के लॉक डाउन ने कर दिखाया। लॉकडाउन में गंगा के पानी की गुणवत्ता बेहतर हो गई है।
गंगा को मनोहारी प पापनाशिनी कहा गया है, लेकिन जब से गंगा तट पर फैक्ट्रियां, कल-कारखाने खुले, सीवेज का पानी गंगा में बहाया जाने लगा- गंगा मैली होती चली गई। हालत ये हो गई कि मैदानी इलाकों में तो इसका पानी अमृत की जगह जहर बन गया। लेकिन लॉक डाउन ने वो कर दिया जो अभी तक करोड़ों-अरबों रुपये बहाकर भी सरकारें नहीं कर पाईं। आईआईटी रुड़की के वैज्ञानिकों ने गंगा पर हाल ही में शोध किया है। शोध में सामने आया है कि लॉक डाउन के दौरान गंगा में प्रदूषण काफी घटा है। वैज्ञानिकों की माने तो गंगा का जल आचमन लायक हो गया है। आईआईटी रुड़की के पर्यावरण इंजीनियरिंग विभाग ने केंद्रीय जल शक्ति मंत्रालय के गंगा प्रोजेक्ट के तहत गंगा जल का परीक्षण किया। गंगा की गुणवत्ता को लेकर किये गए इस परीक्षण में काफी चौंकाने वाले आंकड़े सामने आए हैं। आईआईटी रुड़की के पर्यावरण इंजीनियरिंग विभाग के प्रमुख प्रोफेसर अब्सार काजमी गंगा की गुणवत्ता की जांच करने वाली टीम के भी प्रमुख थे।
प्रोफेसर काजमी के मुताबिक लॉक डाउन के दौरान उन्होंने देवप्रयाग से हरिद्वार तक गंगाजल का परीक्षण किया। इस दौरान देखने में आया कि गंगा की गुणवत्ता पर बहुत फर्क पड़ा है। हरिद्वार में कोलीफॉर्म बैक्टीरिया की मात्रा जीरो मिली है। सामान्य दिनों में ये हरिद्वार में 300 से 500 तक रहते थे। हरिद्वार से आगे तो इनकी मात्रा बढ़कर 1,000 के करीब पहुंच जाती थी। कोलीफॉर्म बैक्टीरिया की मात्रा बढ़ने का सबसे बड़ा कारण गंगा में गिरने वाले सीवेज की गंदगी होती थी।
प्रोफेसर काजमी ने बताया कि लॉक डाउन में हरिद्वार में मानवीय गतिविधियां न के बराबर हैं। सभी काम बंद पड़े हुए हैं। तीर्थयात्रियों की संख्या शून्य होने की वजह से सीवेज की गंदगी भी काफी कम मात्रा में आ रही है। सीवेज का ट्रीटमेंट किया जा रहा है। इसीलिए गंगाजल के स्तर में सुधार आया है। प्रोफेसर काजमी का कहना है कि गंगा में बायोकेमिकल ऑर्गन डिमांड की मात्रा भी तीन से काफी कम पाई गई है। इससे भी गंगा की गुणवत्ता में सुधार हुआ है। बायोकेमिकल ऑर्गन डिमांड कम होने और कोलीफॉर्म बैक्टीरिया के शून्य तक पहुंच जाने से गंगाजल आचमन के लायक भी हो गया है। शोध में पाया गया है कि गंगा की गुणवत्ता में सुधार की मुख्य वजह सीवेज का डायवर्ट होना और गंगापार यात्रियों का दबाव लगभग शून्य हो जाना है। लॉक डाउन की वजह से आवागमन पूरी तरह से बंद है और हरिद्वार में टूरिस्ट एक्टिविटी भी नहीं होने से गंगा में जाने वाले कचरे और मानवीय गंदगी में काफी कमी आई है। शोध से यह तथ्य भी सामने आया है कि अगर हम केवल सीवेज की गंदगी को गंगा में जाने से पूरी तरह से रोक दें और गंगा पर मानवीय दबाव को कम कर दिया जाए तो गंगा निरंतर रूप से निर्मल अविरल प्रवाहित होती रहेगी। हालांकि इस शोध में एक यह भी अच्छी बात सामने आई है कि लॉक डाउन के दौरान भी केंद्र सरकार की परियोजना नमामि गंगे के तहत शुरू किए गए सभी प्रोजेक्ट काम करते हुए मिले।