उत्तरकाशी, इस सीमांत जिले में यूं तो अप्रैल से शुरू होने वाली चार धाम यात्रा की तैयारी है लेकिन नजरें त्रिवेंद्र सरकार के तीन साल के कार्यकाल के पूरे होने पर भी है। मंत्रिमंडल विस्तार की सूरत बनती है तो क्या गंगा यमुना के मायकेे को प्रतिनिधित्व मिलेगा? यह सवाल यहां के लोगों के मन में उठ रहा है। भाजपा राज में लंबे समय से इस सीमांत जिले से कोई मंत्री नहीं बना है। 2012 में कांग्रेस राज में यमुनोत्री से जीते निर्दलीय प्रीतम सिंह पंवार जरूर गठबंधन सरकार में मंत्री बन गए थे।
राज्य बनने से पहले पूरे उत्तरकाशी जिले की एक विधानसभा सीट थी। तब पूरे उत्तराखंड में भी आज की तरह 70 नहीं, बल्कि सिर्फ 19 विधानसभा सीटें थीं। ब्रहादत्त, बरफिया लाल जुंवाठा, बलदेव सिंह आर्य, ज्ञानचंद्र जैसे कई नाम इस क्षेत्र के रहे हैं, जिन्होंने अलग अलग सरकारों में मंत्री पद हासिल किया। चाहे वह राज्य सरकार रही हो या फिर केंद्र सरकार। अलग उत्तराखंड राज्य बनने के बाद यह सिलसिला कमजोर पड़ा है। राज्य बनने के बाद हुए परिसीमन में उत्तरकाशी जिले में चार सीटें दिखती हैं। गंगोत्री, यमुनोत्री, पुरोला और धनोल्टी। इनमें से गंगोत्री यमुनोत्री भाजपा तो पुरोला कांग्रेस और धनोल्टी निर्दलीय के पास है।
मंत्रिमंडल में प्रतिनिधित्व दिये जाने को लेकर उत्तरकाशी क्षेत्र के अपने तर्क हैं। मसलन, सीमांत जिले को भाजपा राज में लंबे समय से प्रतिनिधित्व नहीं मिला है। भाजपा इस जिले में हर चुनाव में अच्छा प्रदर्शन करती है। इसके अलावा, टिहरी लोकसभा क्षेत्र से त्रिवेंद्र सरकार में इस समय कोई मंत्री नहीं है। उत्तरकाशी संपूर्ण जिला टिहरी लोकसभा क्षेत्र के अंतर्गत ही आता है। मंत्री बनाने के सवाल पर विधायकों से लेकर भाजपा के कार्यकर्ताओं और नेताओं का एक ही जवाब है। वो ये कि यह तो पार्टी और मुख्यमंत्री को तय करना है लेकिन अनौपचारिक बातचीत में सब मानते हैं कि यदि सीमांत क्षेत्र के विकास और उसके सामरिक महत्व को देखते हुए बातें होती हैं, तो इसे मंत्रिमंडल में प्रतिनिधित्व जरूर दिया जाना चाहिए। हालांकि शासकीय प्रवक्ता मदन कौशिक का कहना है कि सीएम का यह विशेषाधिकार है। तमाम सारी बातों को ध्यान में रखते हुए सीएम को ही इस पर फैसला करना है।