नगर पालिका और निगम के पेंच में झूल रही तीर्थ नगरी

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ऋषिकेश। नगर पालिका और नगर निगम के पेंच मे झूल रही तीर्थ नगरी की सफाई व्यवस्था का बुरा हाल होकर रह गया है। हर महीने सफाई के नाम पर करीब लाखों का बजट खर्च होने के बाद भी स्वच्छता के मानकों में नगर की हालत पतली है। स्वच्छता सुधार के तमाम इंतजाम धराशायी है।
शहर को साफ-सुथरा रखने के तमाम इंतजाम ध्वस्त होते जा रहे हैं। जगह-जगह लगे कूड़े के ढेर व गंदी नालियां शहर की सुंदरता पर दाग लगा रहे हैं। बावजूद इसके लिए कागजों में शहरी सफाई का दम भरने से प्रशासन नहीं चूक रहा।
शहर की सफाई व्यवस्था का मुख्य जिम्मा नगर पालिका के सफाई कर्मचारियों पर है। कागजों में तो यह कर्मचारी प्रतिदिन दो शिफ्ट में सेवाएं देकर शहर को साफ-सुथरा बना रहे हैं, लेकिन असल हकीकत कागजी आंकड़ों से दूर है। शहर के सभी प्रमुख स्थानों पर बिखरा कूड़ा व्यवस्था पर सवालिया निशान लगा रहा है।
राज्य आंदोलनकारी सरोज डिमरी कहती हैं कि शहर के अंदर सबसे पहले कूड़ा स्थल तय किए जाएं। इसके प्रमुख बाजारों में शौचालय की सुविधा दी जाए, तभी शहर की सुंदरता कायम रहेगी।
अधिवक्ता व समाजसेवी कपिल शर्मा का मानना है कि शहर की सफाई व स्वच्छता के लिए सभी लोगों को जागरूक होना पड़ेगा। चूंकि सिर्फ व्यवस्था करने से साफ-सुथरा शहर नहीं बनेगा, बल्कि आचरण में स्वच्छता को लाना होगा। इसके लिए सुविधाओं के साथ-साथ जागरुकता कार्यक्रम भी चलाए जाए।
वरिष्ठ कांग्रेसी नेता सैय्यद मुमताज हाशिम बताते हैं कूड़ा उठाने के लिए प्रतिदिन कूड़ा गाड़ी नहीं आती है। ऐसे में गंदगी पसरी रहती है। यही कारण है कि सफाई व्यवस्था चरमरा गई है। शहर की गंदगी दूर हो इसके लिए प्रयास होने चाहिए।