पौड़ी जिले के ढांगू क्षेत्र के एक बहुत ही छोटे गांव ठंठोली से विश्वमोहन बडोला की पहचान रही है। यह अलग बात है कि उनका पूरा जीवन लखनऊ, दिल्ली और मुंबई में बीता लेकिन उत्तराखंड से उनका संबंध कभी नहीं टूटा। यही वजह है कि उत्तराखंड के तमाम लोग जब भी उनसे फोन या किसी दूसरे माध्यम से संपर्क करते, बडोला हमेशा गर्मजोशी दिखाते। दिल्ली में गढ़वाल भवन आकर बच्चों से संवाद करने की उनकी इच्छा अधूरी ही रह गई। वह खराब सेहत के बावजूद इसके लिए कोशिश करते रहे लेकिन सफल नहीं हो पाए। बडोला के निधन पर उत्तराखंड में शोक की लहर है।
– विश्वमोहन बडोला उत्तराखंड के बच्चों से करना चाहते थे संवाद
– निधन के बाद पूरे उत्तराखंड में शोक की लहर, हर कोई दुखी
टीवी-फिल्म, रंगमंच, पत्रकारिता के अलावा राजनीति के क्षेत्र से जुडे़ लोग भी इसे बहुत बडे़ नुकसान की तरह देख रहे हैं।बडोला अपने जीवन में कई कई भूमिकाओं में नजर आए और हर जगह प्रभावशाली दिखे। चाहे टाइम्स ऑफ इंडिया के संपादक रहे हों, रंगमंच के कलाकार रहे हों या फिर स्वदेश, जोधा अकबर, लगे रहो मुन्ना भाई, जाॅली एलएलएलबी-2 प्रेम रतन धन पायो जैसी फिल्मों के अदाकार, बडोला ने अपने हुनर का जलवा हर जगह बिखेरा।
टीवी की दुनिया में भी उनका जाना पहचाना नाम रहा। उनके बेटे वरुण बडोला और बेटी अलका कौशल भी टीवी की दुनिया में उन्हीं की तरह नाम कमा रहे हैं। गढ़वाल हितैषिणी सभा के महासचिव पवन मैठाणी याद करते हुए बताते हैं पिछले साल उनकी बडोला जी से मुलाकात हुई थी। तब उनसे अनुरोध किया गया था कि वह गढ़वाल भवन आकर उत्तराखंड के बच्चों के साथ संवाद करें। बच्चों की काउंसिलिंग या फिर मेधावी छात्र सम्मान समारोह में से किसी के लिए भी वह अपना समय दे दें। बडोला जी ने कहा था-मेरा स्वास्थ्य सही रहा तो मैं बच्चों के बीच जरूर आना चाहूंगा। उन्होंने इसे अपनी दिली इच्छा भी बताई थी, लेकिन वह खराब सेहत के कारण आ नहीं पाए। बडोला के निधन से राजनीतिक क्षेत्र की हस्तियां भी दुखी हैं। कांग्रेस के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष किशोर उपाध्याय का कहना है कि कला और मीडिया जगत ने एक कीर्ति स्तंभ खो दिया है।