मुंबई, आरबीआई की मौद्रिक समीक्षा बैठक के बाद आरबीआई ने वित्त वर्ष 2019-20 के लिए जीडीपी ग्रोथ लक्ष्य को घटाने का फैसला लिया है। सरकार के साथ ही रिजर्व बैंक ने जीडीपी ग्रोथ की दर सात फीसदी रहने का अनुमान लगाया था, जिसे घटाकर 6.9 फीसदी किया गया है। आरबीआई का अनुमान है कि वित्त वर्ष 2020-21 की दूसरी छमाही में जीडीपी ग्रोथ 7.3 से 7.5 फीसदी रह सकती है, जबकि इसी वित्त वर्ष की पहली छमाही में इसके 5.8 से 6.6 फीसदी के बीच रहने का अनुमान है। वहीं इस अवधि में खुदरा महंगाई 3.6 फीसदी रह सकती है, जबकि दूसरी छमाही(अक्टूबर-मार्च) में खुदरा महंगाई दर 3.5 से 3.7 फीसदी रहने का अनुमान है।
एमपीसी की बैठक के बाद संभावना जताई गई है कि अगली चार तिमाहियों के लिए बेसलाइन मुद्रास्फीति की दर कई कारकों पर निर्भर करेगी। सबसे पहले, सब्जियों और दालों में कीमतों के दबाव से खाद्य मुद्रास्फीति में वृद्धि जारी रह सकती है। मानसून के असमान रहने के कारण खाद्य पदार्थों पर मुद्रास्फीति पर दबाव बना रहेगा। हालांकि मौजूदा मानसून के बेहतर रहने के कारण जोखिम कम होने की संभावना है। इसके अलावा, अत्यधिक आपूर्ति की स्थिति के कारण कच्चे तेल की कीमतें अस्थिर रह सकती हैं। मध्य-पूर्व क्षेत्रों में भू-राजनीतिक तनाव (जियो-पॉलिटिकल टेंशन) भी मुद्रास्फीति पर असर डाल सकता है। भोजन और ईंधन को छोड़कर सीपीआई मुद्रास्फीति के लिए दृष्टिकोण वर्तमान में नरम दिखाई दे रहा है। विनिर्माण फर्म औद्योगिक आउटलुक सर्वेक्षण में बेहतर नतीजे लेकर आ सकती है। हालांकि मुद्रास्फीति की दरों को आरबीआई ने मॉडरेट किया है।
हाल की नीति दरों के प्रभाव को ध्यान में रखते हुए वित्त वर्ष 2019-20 की दूसरी छमाही के लिए सीपीआई मुद्रास्फीति के 3.1 प्रतिशत रहने का अनुमान लगाया गया है, जबकि दूसरी छमाही में इसके 3.5-3.7 प्रतिशत बने रहने का अनुमान है। 2020-21 की पहले छमाही के लिए सीपीआई मुद्रास्फीति की दर 3.6 प्रतिशत रहने का अनुमान है।
जून महीने के प्रस्ताव (रिजोल्यूशन) के तहत एमपीसी की बैठक में 2019-20 के लिए वास्तविक जीडीपी वृद्धि 7.0 प्रतिशत पर अनुमानित की गई थी। हालांकि पहली छमाही के लिए 6.4-6.7 प्रतिशत की सीमा तय की गई है, जबकि जोखिम तारतम्यता को बरकरार रखते हुए दूसरी छमाही के लिए जीडीपी 7.3-7.5 प्रतिशत अनुमानित है। ट्रेड वॉर और ग्लोबल सुस्ती का असर भारतीय इकोनॉमी पर देखने को मिल रहा है।
रिज़र्व बैंक के औद्योगिक आउटलुक सर्वेक्षण के व्यापार प्रत्याशा सूचकांक में कमी आई है। आरबीआई की ओर से कहा गया है कि एनबीएफसी सेक्टर के लिए एक्सपोजर 15 फीसदी से बढ़ाकर 20 फीसदी किया गया है। देश में निजी निवेश और मांग को बढ़ाना आरबीआई की प्राथमिकता है। घरेलू और विदेशी निवेश बढ़ाने के लिए एमएसएमई सेक्टर के लिए 20 लाख रुपये तक के कर्ज को प्राथमिकता के आधार पर देखा जाएगा। इनपुट लागत में गिरावट आने से विकास की गति को बढ़ाने में मदद मिलने की संभावना जताई गई है।
आरबीआई गवर्नर शक्तिकांता दास ने कहा कि दुनिया भर में महंगाई दर नियंत्रण में है, जिसको देखते हुए दुनिया भर के सेंट्रल बैंक दरें घटा रहे हैं। उन्होंने आगे कहा कि राजनैतिक गतिविधियों से बाजार में उतार-चढ़ाव देखने को मिल रहा है। एमपीसी की बैठक में मुद्रास्फीति को वर्तमान में 12 महीने की अवधि में लक्ष्य के भीतर रहने का अनुमान है। पिछली नीति के बाद से, वैश्विक मार्केट के साथ घरेलू स्तर पर आर्थिक गतिविधि कमजोर बनी हुई है। डाउनसाइड जोखिम, मंदी और व्यापार तनाव में बढ़ोतरी हुई है। इसके अलावा सकल मांग और निवेश में गतिविधि सुस्त बनी हुई है। वास्तविक अर्थव्यवस्था की दर में कटौती की गई है।