देहरादून। संस्थानों को डीम्ड टू बी यूनिवर्सिटी का दर्ज प्राप्त करने के लिए अब कम से कम 30 स्क्वॉयर मीटर जतीन प्रति छात्र देनी होगी। इतना ही नहीं संस्थान नेशनल इंस्टीट्यूट आॅफ रैंकिंग फ्रेमवर्क यानि एनआईआरएफ की रैंकिंग में देश के टॉप 200 संस्थानों में जगह नहीं बना पाता है तो भी डीम्ड टू बी यूनिवर्सिटी का दर्जा संस्थानों को नहीं मिलेगी। यूनिवर्सिटी ग्रांट्स कमीशन (यूजीसी) ने इंस्टीट्यूशंस डीम्ड टू बी यूनिवर्सिटी रेगूलेशन 2016 में बदलाव करते हुए नए सिरे से इंस्टीट्यूशंस डीम्ड टू बी यूनिवर्सिटी रेगूलेशन 2018 तैयार किया है। आयोग ने रेगूलेशन में तय किए गए नियमों और मानकों को लेकर आम जनता से भी सुझाव मांगे हैं। 25 जुलाई तक आयोग सुझाव स्वीकार करेगा। जिसके बाद रेगूलेशन लागू कर दिया जाएगा।
महज कागजों पर नियमों और मानकों की खानापूर्ती कर डीम्ड टू बी यूनिवर्सिटी का दर्जा प्राप्त करना अब आसान नहीं होगा। आयोग शिक्षा की गुणवत्ता को बेहतर करने के मकसद से नया रेगूलेशन जागू करने जा रहा है। रेगूलेशन के नियमों और मानकों पर गौर करें तो अब संस्थानों को गुणवत्ता और उत्कृष्टता की कसौटी पर खुद को साबित करना होगा। मानकों पर खरा उतरने के बाद भी उन्हें डीम्ड टू बी यूनिवर्सिटी का दर्जा मिल सकेगा। रेगूलेशन में कई ऐसे मानक शामिल किए गए हैं जिन्हें पूरा करना अनिवार्य है। इनमें प्रति छात्र 30 स्क्वॉयर मीटर जमीन देना, एनआईआरएफ की रैंकिंग में टॉप दो सौ में शामिल होना या फिर किसी भी एक श्रेणि में टॉप 50 में शुमार होना जरूरी होगा। इसके अलावा जिस जमीन पर संस्थान स्थापित किया गया है वह जमीन कम से कम 30 साल की लीज पर या फिर पूरी तरह से मुक्त होनी चाहिए। आयोग द्वारा निर्धारित कई अन्य नियम भी संस्थानों को अनिवार्य रूप से पूरे करने ही होंगे।
रिसर्च क्षेत्र में कार्य
रिसर्च के क्षेत्र में कार्य को लेकर आयोग निरंतर संस्थानों को प्रोत्साहित करने और छात्रों और फैकल्टी के बीच रिसर्च के प्रति रूचि बढ़ाने के लिए कार्य करता रहता है। लेकिन अब जो संस्थान डीम्ड टू बी यूनिवर्सिटी का दर्जा प्राप्त करने की चाह रखते हैं। उन्हें रिसर्च क्षेत्र में कार्य करना अनिवार्य होगा। आयोग ने साफ तौर पर इसे लेकर निर्देश जारी किए हैं।
दो हजार छात्र होना अनिवार्य
यूजीसी केवल ऐसे संस्थानों को डीम्ड टू बी यूनिवर्सिटी का दर्जा प्रदान करेगी, जिन संस्थानों के पास कम से कम दो हजार छात्रों की संख्या होगी। इसके अलावा 100 शिक्षकों का स्टाफ भी होना जरूरी होगा। इससे कम संख्या पर दर्जा प्रदान नहीं किया जाएगा। होस्टल की बात करें तो आवेदन से पहले तक संस्थानों के पास 25 प्रतिशत छात्रों के लिए हॉस्टल सुविधा होना अनिवार्य है। इसके अलावा दर्जा मिलने के बाद अगल पांच साल में संबंधित संस्थान को निर्धारित छात्र संख्या के 50 प्रतिशत छात्रों के लिए हॉस्टल सुविधा होना जरूरी होगा।
गुणवत्ता की कसौटी पर उतरना होगा खरा
शिक्षा की गुणवत्ता की बात करें तो आज आईआईटी जैसे कुछ चुनिंदा संस्थानों को छोड़ कर बाकी कोई संस्थान विश्व के बेहतरीन 200 में जगह नहीं बना पाता। हालांकि, एमएचआरडी ने गुणवत्ता को बेहतर करने के लिए कई पैमाने तैयार किए हैं। इनमें संस्थानों की मॉनीटरिंग करने के लिए विभिन्न बोर्ड से लेकर नैक एक्रिडिटेशन आदि शामिल हैं। इसी के तहत यदि कोई संस्थान नैक से 3.1 ग्रेड या इससे उपर है तभी ऐसे संस्थानों को डीम्ड टू बी यूनिवर्सिटी के आवेदन के लिए मान्य होंगे।
मानक पर खरे नहीं प्रदेशभर के संस्थान
हायर एजुकेशन के मामले में प्रदेश पिछले काफी वक्त से परेशानी झेल रहा है। कॉलेजों में सुविधाओं और संसाधनों को टोटा तो है ही साथ ही पढ़ाई के लिए शिक्षकों की कमी छात्रों के लिए सबसे बड़ी परेशानी का सबब बनी हुई है। सुविधाओं और संसाधानों के मामले में सभी यूनिवर्सिटी अलग-अलग परेशानियां झेल रही हैं। इनमें परेशानियों से हटकर सबसे बड़ी परेशानी छात्र-शिक्षक अनुपात है। तकरीबन सभी विश्वविद्यालयों में छात्रों की संख्या में मुताबिक शिक्षक नहीं है। ऐसे में यूजीसी के मानक पूरा करना सभी विश्वविद्यालयों के लिए टेढ़ी खीर साबित हो रहा है। इसके अलावा वाई फाई कैंपस करने की संस्थानों की मश्क्कत तो जारी है, लेकिन स्मार्ट कैंपस आदि मामले में भी यूनिवर्सिटी और कॉलेज फेल साबित हैं। ग्रांट के मामले में भी कई यूनिवर्सिटी पहले ही कई यूजीसी की फटकार खा चुकी हैं। निजी संस्थानों में सुविधाएं तो हैं, लेकिन आयोग के नए नियम उनके लिए भी पूरा करना टेढ़ी खीर ही साबित होगा।