उत्तराखंड की मातृ शक्ति हमेशा से ही पर्यावरण के प्रति संवेदनशील रही है । जंगल को अपना मायका मानने वाली यहाँ की महिलायें आज भी वनों की सुरक्षा में सबसे आगे रही। 1974 में गौरा देवी के विश्व विख्यात चिपको आंदोलन की गूंज आज पूरे विश्व में है। गूगल ने सोमवार का अपना होम पेज डूडल इसी मातृ शक्ति को समर्पित किया है। इसका डिजाइन सुवाभू कोहली और विप्लव सिंह ने तैयार किया है। कंपनी का कहना है कि ये डूडल इस आंदोलन से जुड़ी महिलाओं की हिम्मत और सहनशक्ति को सलाम है। इस डूडल के बनाने में कोहली और सिंह ने उत्तराखंड के पहनावे से लेकर ज्वैलरी तक सबको बहुत ही खूबसूरती से पेश किया है।
इसी बीच अलकनन्दा में 1970 में प्रलंयकारी बाढ़ आई, जिससे यहां के लोगों में बाढ़ के कारण और उसके उपाय के प्रति जागरुकता बनी और इस कार्य के लिये प्रख्यात पर्यावरणविद श्री चण्डी प्रसाद भट्ट ने पहल की।इसी दौरान वह चण्डी प्रसाद भट्ट, गोबिन्द सिंह रावत, वासवानन्द नौटियाल और हयात सिंह जैसे समाजिक कार्यकर्ताओं के सम्पर्क में जनवरी 1974 में रैंणी गांव के 2451 पेड़ों का छपान हुआ। 23 मार्च को रैंणी गांव में पेड़ों का कटान किये जाने के विरोध में गोपेश्वर में एक रैली का आयोजन हुआ, जिसमें गौरा देवी ने महिलाओं का नेतृत्व किया।
प्रशासन ने सड़क निर्माण के दौरान हुई क्षति का मुआवजा देने की तिथि 26 मार्च तय की गई, जिसे लेने के लिये सभी को चमोली आना था। इसी बीच वन विभाग ने सुनियोजित चाल के तहत जंगल काटने के लिये ठेकेदारों को निर्देशित कर दिया कि 26 मार्च को चूंकि गांव के सभी मर्द चमोली में रहेंगे और समाजिक कायकर्ताओं को वार्ता के बहाने गोपेश्वर बुला लिया जायेगा और आप मजदूरों को लेकर चुपचाप रैंणी चले जाओ और पेड़ों को काट डालो।
इसी योजना पर अमल करते हुये श्रमिक रैंणी के देवदार के जंगलों को काटने के लिये चल पड़े। इस हलचल को एक लड़की द्वारा देख लिया गया और उसने तुरंत इससे गौरा देवी को अवगत कराया। गांव में उपस्थित 21 महिलाओं और कुछ बच्चों को लेकर वह जंगल की ओर चल पड़ी। इनमें बती देवी, महादेवी, भूसी देवी, नृत्यी देवी, लीलामती, उमा देवी, हरकी देवी, बाली देवी, पासा देवी, रुक्का देवी, रुपसा देवी, तिलाड़ी देवी, इन्द्रा देवी शामिल थीं। इनका नेतृत्व कर रही थी, गौरा देवी, इन्होंने खाना बना रहे मजदूरो से कहा, “भाइयो, यह जंगल हमारा मायका है, इससे हमें जड़ी-बूटी, सब्जी-फल, और लकड़ी मिलती है, जंगल काटोगे तो बाढ़ आयेगी, हमारे बगड़ बह जायेंगे, आप लोग खाना खा लो और फिर हमारे साथ चलो, जब हमारे मर्द आ जायेंगे तो फैसला होगा।” ठेकेदार और जंगलात के आदमी उन्हें डराने-धमकाने लगे, उन्हें बाधा डालने में गिरफ्तार करने की भी धमकी दी, लेकिन यह महिलायें नहीं डरी। ठेकेदार ने बन्दूक निकालकर इन्हें धमकाना चाहा तो गौरा देवी ने अपनी छाती तानकर गरजते हुये कहा “मारो गोली और काट लो हमारा मायका” इस पर मजदूर सहम गये।
गौरा देवी के अदम्य साहस से इन महिलाओं में भी शक्ति का संचार हुआ और महिलायें पेड़ों के चिपक गई और कहा कि हमारे साथ इन पेड़ों को भी काट लो। इस प्रकार से पर्यावरण के प्रति अतुलित प्रेम का प्रदर्शन करने और उसकी रक्षा के लिये अपनी जान को भी ताक पर रखकर गौरा देवी ने जो अनुकरणीय कार्य किया, उसने उन्हें रैंणी गांव की गौरा देवी से चिपको वूमेन फ्राम इण्डिया बना दिया।
चिपको आंदोलन की जननी गौरा देवी के चिपको आंदोलन को गूगल ने अपने अंदाज़ में श्रद्धांजली दी है।गूगल द्वारा इस्तेमाल हुआ डूडल स्वाभू कोहली और विप्लव सिंह ने बनाया है।इस डूडल के बनाने में कोहली और सिंह ने उत्तराखंड के पहनावे से लेकर ज्वैलरी तक सबको बहुत ही खूबसूरती से पेश किया है। गूगल का यह डूडल उन सभी को समर्पित है जिन्होंने दुनियाभर में पर्यावरण संरक्षण में योगदान दिया है।
इस आंदोलन की शक्ति से समाज में बदलाव को बढ़ावा मिला था।तो आज अपनी व्यस्त जिंदगी से थोड़ा सा वक्त निकाल कर अपने पसंदीदा पेड़ को गले लगाना ना भूले और एक बार फिर चिपको आंदोलन को अपने आस पास लगे पेड़ों के साथ मनाएं।गौरतलब है कि यह पहली बार नहीं हुआ है इससे पहले भी गूगल ने उत्तराखंड के नैन सिंह रावत को अपने डूडल से श्रद्धांजलि दी है।