(नई टिहरी) राज्यसभा सांसद प्रदीप टम्टा ने कहा कि 2013 की आपदा से अगर केंद्र व राज्य सरकार ने सबक लिया होता, तो रैणी आपदा में कई लोगों की जान बचाई जा सकती थी। टम्टा ने आपदा में लापता होने वाले लोगों को मृत घोषित करने की केंद्र सरकार की पहल को सरकार के हाथ खड़े करना बताया।
सांसद प्रदीप टम्टा गुरुवार को यहां जिला कांग्रेस कार्यालय पर पत्रकारों से बातचीत कर रहे थे।उन्होंने कहा कि 2013 की आपदा के बाद तत्कालीन केंद्रीय कैबिनेट सचिव बीके चतुर्वेदी की अध्यक्षता में तैयार गई रिपोर्ट व आपदा से निपटने को की गई संस्तुतियों को भाजपा सरकार ने दबाने का काम किया है। यदि उन सिफारिशों को अमल में लाया गया होता तो रैणी आपदा से निपटने में आज आसानी होती। उन्होंने टिहरी डैम और अन्य जलस्रोतों से उपजने वाली भविष्य की संभावित आपदाओं को लेकर सवाल उठाते हुये कहा कि क्या केंद्र व राज्य सरकारों के पास इनसे निपटने के लिए कोई प्लान या मेकेनिज्म है। पहाड़ में बड़ी जल विद्युत परियोजनाओं को मंजूरी किस आधार पर दी जा रही है, जबकि इन परियोजनाओं के कारण उपजने वाली आपदाओं और टनलों में आपदा से निपटने के इंतजाम और अत्याधुनिक मशीनें नहीं है।
उन्होंने कहा कि तत्कालीन केंद्रीय कैबिनेट सचिव बीके चतुर्वेदी की सिफारिशों को दबा दिया गया। रिपोर्ट में हिमालयी राज्यों के लिए तमाम परियोजनाओं से हुये नुकसान की भरपाई के लिए ग्रीन बोनस दिये जाने की फार्मूले के साथ व्यवस्था थी, लेकिन इस पर भी केंद्र सरकार ने चुप्पी साध रखी है। उन्होंने कहा कि इस आपदा के दौरान न बारिश थी, न तूफान था। रैणी गांव के नीचे हो रहे विस्फोटों व प्रकृति से छेड़छोड़ के कारण ऊपरी क्षेत्र में हुई हलचल का परिणाम है।1974 में चिपको आंदोलन इसलिए चला था, कि यहां पर पेड़ों के कटान से भविष्य में आपदा आ सकती है। जिसकी गंभीरता को देखते हुये कटान रोका गया। लेकिन रैणी गांव के नीचे ऋषि गंगा व तपोवन में बड़ी परियोजनाओं का किस आधार पर बिना आपदा से निपटने की तैयारियों के बिना मंजूरी दी गई है। पत्रकार वार्ता के दौरान कांग्रेस के जिलाध्यक्ष राकेश राणा, बार एसोसिएशन के अध्यक्ष शांति भट्ट, महिला कांग्रेस अध्यक्ष दर्शनी रावत, अनिता देवी, सरताज, नवीन सेमवाल आदि मौजूद रहे।