वनाग्नि रोकने के लिए सरकार ने खोजा रास्ता, अब पिरूल से होगी कमाई, खुलेंगे रोजगार के द्वार

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    जंगल
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    धामी सरकार ने वनाग्नि रोकने के लिए रास्ता खोज निकाला है। वनाच्छादित राज्य उत्तराखंड में आग लगने का सबसे बड़ा कारण पिरूल है। ऐसे में प्रदेश भर में पिरूल निस्तारण की कार्रवाई की जा रही है। पिरूल एकत्रीकरण से पिरूल के वन क्षेत्रों से हटने से वनाग्नि की घटनाओं में कमी आएगी। साथ ही स्थानीय संग्रहणकर्ताओं को आय अर्जित होगी। इससे स्थानीय लोगों को रोजगार के अवसर प्राप्त होंगे।

    वनाग्नि रोकथाम के लिए वन विभाग उत्तराखंड की ओर से प्रदेश के चीड़ बाहुल्य वन क्षेत्रों के अंतर्गत चीड़-पिरूल निस्तारण के लिए कार्रवाई की जा रही है। प्रदेश भर में वर्ष 2024 में 38299.48 क्विंटल चीड़ पिरूल एकत्रित किया गया है। चीड़ बाहुल्य 57 क्षेत्रीय वन रेंजों में पिरूल एकत्रीकरण केंद्र स्थापित करने के लिए लक्ष्य निर्धारित किया गया है। इन 57 क्षेत्रीय वन रेंजों में कम से कम एक ब्रिकेट-पैलेट यूनिट की स्थापना करने का भी लक्ष्य है। प्रथम चरण में वनाग्नि के दृष्टिगत अतिसंवेदनशील दो वन प्रभागों अल्मोड़ा एवं गढ़वाल वन प्रभाग के चीड़ बाहुल्य क्षेत्रों में पिरूल एकत्रीकरण केंद्रों की जीआईएस मैपिंग की कार्यवाही गतिमान है। वर्तमान में चीड़ पिरूल से पैलेट्स-ब्रिकेट्स यूनिट मसूरी वन प्रभाग के रिगांलगढ़ क्षेत्र में स्थापित की गई है। इसमें पैलेट्स-ब्रिकेट्स उत्पादन प्रारंभ कर दिया गया है। वहीं सभी वन क्षेत्राधिकारी जिला स्तर पर उद्योग और ग्रामीण विकास विभाग के संबंधित अधिकारियों से समन्वय स्थापित कर उद्यमियों का चयन कर उन्हें राज्य सरकार व वन विभाग से दी जाने वाली सुविधाओं और सहयोग के विषय में जागरूक करेंगे।

    मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने प्रदेश में कुशल वनाग्नि प्रबंधन के लिए चीड़ पिरूल एकत्रीकरण को मिशन मोड में संचालित किए जाने के निर्देश दिए हैं। कुशल वनाग्नि प्रबंधन के दृष्टिगत चीड़ पिरूल एकत्रीकरण को महत्वपूर्ण मानते हुए प्रत्येक चीड़ आच्छादित वन प्रभाग में चीड़ पिरुल एकत्रीकरण के लिए लक्ष्य निर्धारित किए जाने के निर्देश भी मुख्यमंत्री ने दिए हैं। मुख्यमंत्री धामी के निर्देशों के बाद इसे मिशन मोड में संचालित किया जा रहा है।