उत्तराखंड में मतदान में अभी कुछ ही दिन बाकी है ऐसे में सालों से उत्तराखंड के जंगलो में रह रहे वन गुज्जर समुदाय की भी अपनी परेशानिया हैं। एक तरफ तो उत्तराखंड में दोनों राष्ट्रीय पार्टियां अपने अपने मेनिफेस्टो में जनता के लिए बड़े बड़े वादे कर विकास की नयी योजनाओ के सपने दिखा रही है। ऐसे में लोक तंत्र के महापर्व में कुछ ऐसे परिवारों की दशा आपको दिखाते है जो सालों से जंगलो के बीच रह कर अपने सपनो को बुन रहे है,और गणतंत्र के चुनावी महापर्व में अपनी भागीदारी निभा कर भी विकास से अछूते रह रहे हैं। इनके लिए न तो राज्य सरकार के पास कोई योजना है न केंद्र सरकार के पास। हालांकि टाइगर रिजर्व बनने से पूर्व यहाँ से कई परिवारों का विस्थापन हो गया है लेकिन अभी कुछ परिवार विस्थापन की राह देख रहे है। गौरतलब है कि राजाजी टाइगर रिजर्व में रह रहे वन गुज्जरों के कई परिवारों को पार्क से विस्थापित करने के बाद भी यहाँ 221 परिवार ऐसे है जो यहाँ रहने को मजबूर हैं या यह कहे यहाँ से हटने को तैयार नहीं।
1983 में राजाजी पार्क के गठन के बाद से ही इस पार्क के भीतर रहने वाले वन गुज्जर पार्क महकमे के लिए एक बड़ी समस्या बने हुए है। इन गुज्जरों को पार्क से बेदखल करने के लिए राजाजी पार्क के प्रसाशन ने साल 1998 में इनकी गणना करवाई थी। उस गणना के बाद 1392 गुज्जरों के परिवारों को यहाँ से विस्थापित कर हरिद्वार के गेंड़ीखाता व् पथरी में भूमि दी गई थी मगर इनमे से 168 परिवार ऐसे थे जो यहाँ से नहीं गए उनका अरोप था की पार्क महकमे द्वारा उनके कई परिवारों को भूमि नहीं दी गई। इस सम्बन्ध में पार्क ने फिर से वर्ष 2001 में उन बचे 168 परिवारों की गणना की मगर दस सालों में उन परिवारों की संख्या बड कर 1600 के आसपास हो गई। धीरे धीरे उनमे से कई परिवार पार्क से विस्थापित हो गए , उसके बाद लगभग चार सौ से ऊपर परिवार यंहा रह रहे थे जिसमे से कुछ परिवार वन विभाग से वार्ता के बाद अब जल्द ही गांडीखाता में विस्थापित हो गए और बाकी के 228 परिवारो को जल्द ही शाह मंसूर में विस्थापित करने की प्रक्रिया होनी बाकी है। इन परिवारों को नयी सरकार से काफी उम्मीद है अब ये गुज्जर परिवार अपने बच्चो के भविष्य के लिए सरकार से मांग कर रहे है कि पार्क में छूटे हुए परिवारों को जल्द विस्थापित किया जाए।
हर बार वोट के समय नेता इन परिवारों से वोट तो मंगाते है लेकिन इन परिवारों की बाद में कोई सुध नहीं लेता ,बदलते ज़माने के साथ ये वन गुज्जर भी बदलना चाहते है जंगलो का मोह , पशुओ का संसार और दो जून की रोटी इनको जंगलो तक ही सिमित कर देती है