उत्तर प्रदेश के विंध्याचल में त्रिकोण शक्तिपीठ के बाद हरिद्वार त्रिकोण शक्तिपीठ का प्रमुख स्थल है। विंध्याचल में जहां मां विंध्यवासिनी व महाकाली मंदिर तथा मां सरस्वती मंदिर मिलकर त्रिकोण का आकार बनाते हैं, वहीं हरिद्वार में मायापुरी की अधिष्ठात्री देवी मां माया देवी, चण्ड-मुण्ड का वध कर नील पर्वत पर विराजमान होने वाली मां चण्डीदेवी तथा विल्व पर्वत पर विराजमान मां मंशादेवी मिलकर हरिद्वार में त्रिकोण शक्तिपीठ को सार्थकता प्रदान करते हैं। त्रिकोण शक्तिपीठ के साधना का विशेष महत्व बताया गया है।
ज्योतिषाचार्य श्रीमंहत त्रिवेणी दास महाराज के अनुसार शक्ति के त्रिकोण पीठ में साधना का विशेष महत्व है तथा यह विशेष फलदायी भी होती है। नवरात्र में त्रिकोण शक्ति के केन्द्र साधना करने से साधक को विशेष फल की प्राप्ति होती है। त्रिवेणीदास महाराज के अनुसार तीर्थनगरी मायापुरी क्षेत्र में शक्ति साधना का महत्व अन्य स्थानों पर साधना करने से अधिक होता है। कारण कि देश-विदेश में स्थापित 51 शक्तिपीठों के प्रादुर्भाव का प्रमुख केन्द्र मायापुरी का कनखल क्षेत्र है। जो भगवान शिव की ससुराल भी है।
बतादें कि जिस स्थान पर मायादेवी मंदिर है वहां भगवती सती की नाभी का भाग गिरा था। इस कारण इसका नाम मायादेवी पड़ा। मायापुरी क्षेत्र में ही माता पार्वती ने भगवान शिव का पाने के लिए विल्वक्षेत्र में हजारों वर्षों तक तप किया। यह क्षेत्र नवदुर्गाओं की उत्पत्ति की आधारभूता मां पार्वती की तपस्थली होने के कारण भी शक्ति उपासना करना यहां विशेष फलदायी होता है। यही कारण है कि दूर-दराज के क्षेत्रों से आकर लोग यहां नवरात्र में शक्ति की आराधना करते हैं तथा ब्राह्मणों द्वारा पाठ करवाते हैं।