आधुनिकता के इस दौर में हम अपने सामाजिक मूल्यों को दिन प्रतिदिन कितनी तेजी से खोते जा रहे हैं अनेकों ऐसे उदाहरण हमें अपने आसपास खूब देखने को मिलते हैं। हम हर रोज नई सामाजिक संरचना की ओर एक कदम बढ़ाते हैं। हमारी जिम्मेदारी तब और अधिक बढ़ जाती है की जब यह प्रश्न विचारनीय होता है कि हमारी पूर्व की पीढ़ियों ने हमें कैसा समाज दिया था और हम आने वाली पीढ़ियों के लिए कैसा समाज छोड़कर जा रहे हैं।
पौराणिक काल से ही गुरु-शिष्य की परंपरा आदरणीय, पूजनीय, सम्मानीय रही है। सेंट मेरी स्कूल, ज्वालापुर, हरिद्वार की चर्चा आजकल विवादों के कारण ही हो रही है, विवादों के कारण अखाड़ा बन चुका ये शिक्षा का मंदिर ऐसा स्वरूप भी रखता है जोकि अन्य शिक्षण संस्थाओं में देखने को नहीं मिलता, सेंट मेरी वेलफेयर सोसाइटी का गठन सेंट मैरी स्कूल के अधिकांश शिक्षक शिक्षिकाओं के द्वारा किया गया था।
इस वेलफेयर सोसाइटी का गठन भले ही स्कूल मैनेजमेंट की आंखों की किरकरी बना हो परंतु इस वेलफेयर सोसाइटी के द्वारा किए गए अभी तक के कुछ महत्वपूर्ण कार्य दूसरी शिक्षण संस्थाओं के लिए एक नजीर बनकर सार्थक उदाहरण पेश कर रहे हैं। चारु पाहवा, हिना पाहवा को दो दो वर्षों तक स्कूल की फीस के रूप में वित्तीय सहायता दी गई, मनोज कुमार का बैंक में अकाउंट खुलवा कर वित्तीय सहायता दी गई, सरवीना जोकि सेंट मेरी स्कूल की ही शिक्षिका है उनका ऐसे समय पर सहयोग किया गया जब उनके पति कैंसर की गंभीर बीमारी से पीड़ित थे।
उन्हें 85000 रुपए की वित्तीय सहायता उपलब्ध कराई गई जैसे न जाने कितने उदाहरण है जिनकी सहायता चाहे वह आर्थिक रूप से रही हो या शैक्षणिक रूप से रही हो इस सोसाइटी के सदस्यों व पदाधिकारियों द्वारा की गई है. ईसाई मिशनरी की इस संस्था के मूल्य उद्देश्य व गुरु शिष्य परंपरा को चरितार्थ करने वाले शिक्षक साधुवाद व सम्मान के पात्र हैं लेकिन वक्त का खेल देखिए सेंट मैरी स्कूल का नाम रोशन करने वाले निस्वार्थ सेवा भाव अपनी सेवा देने वाले शिक्षक आज सेंट मेरी स्कूल मैनेजमेंट को साजिशकर्ता व अयोग्य नजर आ रहे हैं.