देहरादून, कोरोना काल में अभी तक सोशल मीडिया पर मोर्चा खोले बैठे पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत अब सड़कों पर हैं। अपने अंदाज में सरकार की घेराबंदी कर रहे हैं। लोगों का ध्यान अपनी तरफ खींच रहे हैं। बात बैलगाड़ी में बैठकर महंगाई का विरोध करने की हो या राजभवन के बाहर धरना देने के ऐलान की। रावत एक बार फिर बड़ी लकीर खींचने की कोशिश में हैं। अपने अंदाज में वह प्रदेश नेतृत्व के सामने सरकार के खिलाफ और आक्रामकता दिखाने की चुनौती भी पेश कर रहे हैं।
-सड़कों पर निकलकर सभी का ध्यान खींच रहे पूर्व मुख्यमंत्री
हरीश रावत को राष्ट्रीय स्तर पर महासचिव और असम के प्रभारी का दायित्व दिया गया है पर उनका मन उत्तराखंड में रमा हुआ है। असम का दायित्व मिलते समय उन्होंने कहा भी था कि जिम्मेदारी जो भी मिले, लेकिन उत्तराखंडी होने के नाते यहां के मामलों से वह अलग नहीं रह सकते। कोरोना काल में हरीश रावत ने पहले तो दिल्ली में रहकर सोशल मीडिया को हथियार बनाकर सरकार को घेरा। अब वह उत्तराखंड पहुंचकर सबका ध्यान खींच रहे हैं।
महंगाई के विरोध में बैलगाड़ी में बैठकर जिस दिन हरीश रावत सड़कों पर निकले, उसी दिन प्रदेश कार्यालय में प्रदेश अध्यक्ष प्रीतम सिंह ने कार्यकर्ताओं के साथ धरना दिया। बैलगाड़ी पर बैठकर विरोध जताने का अनूठा अंदाज हरीश रावत के कार्यक्रम को सबसे अलग कर गया। उनके और समर्थकों के खिलाफ मुकदमे भी दर्ज हुए हैं। मुकदमों के लिए रावत ने सरकार का आभार जताया है। विरोध स्वरूप राजभवन के गेट पर धरने के ऐलान को अमल में लाने के लिए उन्होंने सड़क पर पसीना बहाकर फिर ध्यान खींचा। साफ है, कांग्रेस में हरीश रावत सरकार को घेरने के मामले में लंबी लकीर खींच देना चाहते हैं, ताकि हाईकमान मानने के लिए तैयार हो जाए कि उत्तराखंड में भाजपा की मजबूत घेराबंदी हरीश रावत के बूते ही संभव है। हालांकि कांग्रेस के लोग रावत की कोशिश को इस नजरिये से नहीं देख रहे हैं। प्रदेश प्रवक्ता नवीन जोशी के अनुसार, चाहे वह हरीश रावत हों या प्रीतम सिंह या फिर आम कार्यकर्ता, भाजपा की जनविरोधी नीति के खिलाफ सभी अपने स्तर से आवाज उठाने का काम कर रहे हैं। सभी का मकसद पार्टी की मजबूती और जनहित है।