कांग्रेसः कोई भी हो मजबूरी, हरदा तो जरूरी

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हरीश रावत

अपने खास अंदाज और अनुभव में पकी सियासत से विरोधियों को नाच नचा देने वाले हरीश रावत का कद हाईकमान ने एक बार फिर बढ़ा दिया है। अपनी सत्ता वाले और उत्तराखंड से एकदम नजदीकी राज्य पंजाब का उन्हें प्रभारी बनाया जाना, कई सियासी मायने लिए हुए है। असम का प्रभारी बनाकर कुछ समय पहले उन्हें स्पष्ट संकेत दिया गया था कि वह उत्तराखंड में कम दिलचस्पी लेकर सुदूर असम में काम करें। मगर पंजाब से जुडे संकेत पकड़ने की जरूरत है।

पार्टी हाईकमान ने अब उन्हें उत्तराखंड में भी खुलकर बैटिंग करने का अवसर प्रदान कर दिया है। हरीश रावत असम प्रभारी रहते हुए भी उत्तराखंड में सक्रिय रहे। उन पर पार्टी संगठन के समानांतर अलग से कार्यक्रम चलाने का आरोप लगता रहा, लेकिन अपने खास अंदाज में भाजपा की घेराबंदी करना पार्टी हाईकमान को पसंद आया। हालांकि प्रीतम सिंह की अगुवाई में कांग्रेस ने पिछले दिनों में सरकार के खिलाफ कई आंदोलन किए हैं, लेकिन हरीश रावत ने अपने कार्यक्रमों के जरिये अलग छाप छोड़ी है।

2022 के विधानसभा चुनाव नजदीक देखकर हाईकमान ने भी यह महसूस किया है कि भाजपा की चुनौती का जवाब देने के लिए उत्तराखंड में हरीश रावत के बगैर काम नहीं चल सकता। एक रणनीति के तहत करीब डेढ़ साल असम में हरीश रावत को व्यस्त रखकर पार्टी ने उत्तराखंड में प्रीतम सिंह को भी काम करने लायक उपयुक्त माहौल उपलब्ध कराया है। पार्टी की मंशा यही नजर आ रही है कि वह भाजपा के खिलाफ हरीश-प्रीतम दोनों नेताओं का उपयोग करे। हालांकि दोनों नेताओं की एकता की राह में पूर्वाग्रह और प्रतिद्वंद्विता की जो स्थिति है, उसमें हाईकमान का सोचना कितना सच हो पाता है, यह दूसरी बात है। प्रदेश महामंत्री नवीन जोशी का मानना है कि दोनों नेताओं के बीच कोई मतभेद नहीं हैं और दोनों ही भाजपा को उखाड़ फेंकने के लिए पूरी मजबूती से काम कर रहे हैं।