सिखों के पवित्र धाम श्री हेमकुंड साहिब के कपाट श्रद्धालुओं के लिए खुले

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Hemkund Sahib
गोपेश्वर। गोविंदघाट गुरुद्वारा में अखंड साहिब के पाठ, भजन एवं कीर्तन कर पंच प्यारों की अगुवाई में हेमकुंड साहिब की यात्रा के लिए शुक्रवार को पहला जत्था रवाना कर दिया गया था। हेमकुंड साहिब के कपाट शनिवार एक जून को आम श्रद्धालुओं के लिए खुल गए हैं। सुबह 9.00 बजे हेमकुंड साहिब के कपाट खुल गए जिसके बाद  9.15पर पंच प्यारे की अगुवाई में गुरुग्रंथ साहिब को दरबार साहिब में लाया गया। वहीं 10 बजे से सुखमणी पाठ होगा. और 11 बजे से शब्द कीर्तन शुरू होगें. 12.30 पर पहली अरदास और जिसके बाद 12.45 पर हुक्मनामा का पाठ होगा ।
गोविदघाट में गढवाल मंडल आयुक्त डाॅ. बीवीआरसी पुरुषोत्तम ने हेमकुंड साहिब यात्रा का शुभारंभ किया। पहले जत्थे में ही 8 हजार से अधिक श्रद्वालु हेमकुण्ड के लिए रवाना हुए।
शुक्रवार को गढ़वाल मंडल आयुक्त ने पवित्र धाम हेमकुंड एवं लोकपाल-लक्ष्मण मंदिर की सुरक्षित एवं फलदायी तीर्थ यात्रा की कामना की। यात्रामार्ग की व्यवस्थाओं का निरीक्षण करने के लिए गढ़वाल आयुक्त स्वयं भी जिला प्रशासन की टीम सहित पहले जत्थे के साथ हेमकुंड के लिए रवाना हुए। इस अवसर पर आयुक्त ने कहा कि इस बार भारी बर्फबारी होन से हेमकुंड में अभी भी बर्फ जमी होने के कारण कुछ समस्याऐं जरूर हैं, फिर भी यात्रा को सफल एवं सुगम बनाने के लिए हर संभव तैयारियां की गई है। यात्रा के दौरान श्रद्धालुओं को पैदल मार्ग पर पूरी सुविधाएं मिलें इसके लिए विभागीय अधिकारियों को निर्देशित किया जा चुका है और जो भी कमियां रह गई है उसको भी शीघ्र दूर करने का प्रयास किया जाएगा।
इस वर्ष चारों धामों में यात्रा पूरे जोर-शोर से चल रही है। देश-विदेश से हजारों तीर्थयात्री व पर्यटक हर रोज पवित्र धामों के दर्शन कर रहे है। हेमकुंड साहिब की यात्रा शुरू होने से रिर्काड तोड़ यात्री इस वर्ष पवित्र धामों की यात्रा पर आ रहे हैं। उन्होंने पवित्र धामों में आने वाले सभी श्रद्वालुओं से स्वच्छता बनाये रखने की अपील भी की है।
इतिहास के पन्नों में श्री हेमकुंड साहिब कैसे हुई खोज क्या है कहानी:-

सर्वे ऑफ इंडिया के अनुसार, ये सात पर्वत चोटियों से घिरा हुआ एक हिमनदों झील के साथ 4632 मीटर (15,197 फीट) की ऊंचाई पर हिमालय में स्थित है। इसकी सात पर्वत चोटियों की चट्टान पर एक निशान साहिब सजा हुआ है, यहां पर गोविन्दघाट से होते हुए ऋषिकेश-बद्रीनाथ राजमार्ग पर 1937 में गुरु ग्रंथ साहिब को स्थापित किया गया, जो आज दुनिया में सबसे ज्यादा माने जाने वाले गुरुद्वारे का स्थल है। 1939 में संत सोहन सिंह ने अपनी मौत से पहले हेमकुंड साहिब के विकास का काम जारी रखने के मिशन को मोहन सिंह को सौंप दिया। गोबिंद धाम में पहली संरचना को मोहन सिंह द्वारा निर्मित कराया गया था।1960 में अपनी मृत्यु से पहले मोहन सिंह ने एक सात सदस्यीय कमेटी बनाकर इस तीर्थ यात्रा के संचालन की निगरानी दे दी। आज गुरुद्वारा श्री हेमकुंड साहिब के अलावा हरिद्वार, ऋषिकेश, श्रीनगर, जोशीमठ, गोबिंद घाट, और गोबिंद धाम में गुरुद्वारों में सभी तीर्थयात्रियों के लिए भोजन और आवास उपलब्ध कराने का प्रबंधन इसी कमेटी द्वारा किया जाता है।

कैसे हुई खोज:

पंडित तारा सिंह नरोत्तम जो उन्नीसवीं सदी के निर्मला विद्वान थे। हेमकुंड की भौगोलिक स्थिति का पता लगाने वाले वो पहले सिख थे, श्री गुड़ तीरथ संग्रह में जो 1884 में प्रकाशित हुआ था, में उन्होंने इसका वर्णन 508 सिख धार्मिक स्थलों में से एक के रूप में किया है। बहुत बाद में प्रसिद्ध सिख विद्वान भाई वीर सिंह ने हेमकुंड के विकास के बारे में खोजकर महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। भाई वीर सिंह का वर्णन पढ़कर संत सोहन सिंह जो एक रिटायर्ड आर्मीमैन थे, ने हेमकुंड साहिब को खोजने का फैसला किया। वर्ष 1934 में वो सफल हो गया, पांडुकेश्वर में गोविंद घाट के पास संत सोहन सिंह ने स्थानीय लोगों के पूछताछ के बाद वो जगह ढूंढ ली जहां राजा पांडु ने तपस्या की थी और बाद में झील को भी ढूंढ निकला जो लोकपाल के रूप विख्यात थी।