विश्व पर्यावरण दिवस पर, उत्तराखंड पुलिस ने पहाड़ के लोगों के लिये उत्तराखंड के दुर्लभ, और पौराणिक फूलों की एक बहुत ही खूबसूरत तस्वीर पेश की है। जी हां आपने बिल्कुल सही पहचाना यह तस्वीर है राज्य के सबसे चहेते ब्रह्मकमल की। 12 से 15 इंच लंबी शानदार पत्तियों के साथ, गहरे हरे रंग का फूल अपने आप में ही उत्तराखंड की पहचान है।
समुद्र तल से 3553 मीटर की ऊंचाई पर उत्तराखंड के प्रसिद्ध शिवालयों में से एक केदारनाथ के नंदी बेस कैंप के पास पुलिस स्टेशन में बनी 6 मीटरx 8 मीटर के छोटे से बगीचे में इसे उगाया गया है। गौरतलब है कि इस दुर्लभ फूल को उद्यान विभाग ने नहीं रुद्रप्रयाग पुलिस ने उगाया है। पुलिस उप निरीक्षक की अध्यक्षता में बनी इस नर्सरी के एक्सक्लूसिव तस्वीरें न्यूजपोस्ट पर आप देख सकते हैं। ब्रह्म वाटिका के बारे में बताते हुए सब इंस्पेक्टर बिपिन चंद्र पटनायक ने कहा कि, ”हमारी इस पहले के बारे में सुनकर मुख्य सचिव खासतौर पर इस नर्सरी को देखने आये थे और उन्होने वादा किया था कि जब यहां फूल खिल जायेंगे तो वो दोबारा आयेंगे। हमारी इच्छा है कि अब वो आयें और अपने साथ डीजीपी सर को भी लायें। पिछले साल केवल 7 फूल ही खिले थे लेकिन इस साल कुल 30-40 फूल खिल रहे हैं, औऱ यह बहुत ही खुशी की बात है।“
ब्रह्मकमाल या लेटिन में सौसुरिया ओबवाल्टा तीर्थयात्रा मार्ग में विलुप्त होता फूल है क्योंकि यह फूल मंदिरों में प्रसाद की तरह चढ़ाया जाता है। ब्रह्म कमल का जिक्र महाभारत में भी मिलता है जहां चिर यौवन पाने के लिये द्रौपदी भीम से ब्रहम कमल लाने को कहती है।
2015 में बनी यह ब्रह्म वाटिका नर्सरी में ब्रह्म कमल के लगभग 180-200 पौधे हैं जो एक छोटे से क्षेत्र में उग रहे हैं। तीन साल की कड़ी मेहनत और देखभाल के बाद एक बार फिर से इन में फूल खिलने लगे हैं। लगभग विलुप्त होने की कगार पर पहुंचने के बाद इस साल फिर से ब्रह्रमकमल का खिलना उन सभी के लिए एक बहुत बड़ी बात है जिन्होंने इस नर्सरी की देखभाल की है।
यह नर्सरी दुनिया के दूर-दराज़ के कोनों से आने वाले पर्यटकों और तीर्थयात्रियों बीच एक जबरदस्त हिट साबित हुआ है। नर्सरी में उन्हें इस तरह के पौराणिक पौधों को इतने करीब से देखने का मौका मिलता है। गुजरात से आए ध्रुव पटेल, तीर्थयात्रा पर आए इन फूलों को देखने के बाद कहते हैं कि, “इस यात्रा में वैसे ही सब कुछ इतना अच्छा है उसमें जब आप ब्रह्म कमल देख लेते हैं तो यह सोने पर सुहागा हो जाता है। इन फूलों के खिलने और लोगों के बीच मशहूर होने का क्रेडिट उन लोगों को जाता है जिन्होंने इन पौधों को 14 हजार फीट से लाकर यहां लगाया और सभी बाधाओं को पार करते हुए इनकी देखभाल की है जिसकी वजह से आज दूर-दराज़ से आए लोग इन फूलों को देख पा रहे हैं जिनको देखना लगभग नामुमकिन था।”