एक ऐसा विदेशी, जिसके घर पर लहराता है तिरंग और वे हिंदी के हैं दीवाने। धरती का स्वर्ग कहे जाने वाले स्विट्जरलैंड के निवासी पीथल लोदार(भोला दास) अपना देश छोड़कर उत्तराखंड में बसे गए हैं। उनका पूरा परिवार ऋषिकेश के पास पौड़ी के यमकेश्वर ब्लॉक में रह रहा है। 17 साल से यहां बसे लोदार परिवार ने अब भारत को ही अपना देश मान लिया है। ये परिवार यहां एक छोटे से गांव में हिंदी को बढ़ावा देने और समझने के बाद अब तमाम स्थानों पर घूमकर लोगों को हिंदी का महत्व समझा रहा है।
हिन्दुस्थान समाचार संवाददाता ने हिंदी दिवस पर इस शख्स से बातचीत की। पीथल अपनी आरामदायक जिंदगी छोड़कर पहाड़ में ही खेती करके अपना गुजारा करते हैं। जानवर पालकर उनका दूध निकालकर और चूल्हे में रोटी बनाकर अपनी रोजमर्रा की जिंदगी ठीक वैसे ही जी रहा है जैसे एक पहाड़ का परिवार जीता है। इस विदेशी परिवार के मुखिया पीथल लोदर अब भोला दास बन गए हैं। भोला दास ने अपना नाम तो बदला ही साथ ही अपनी पत्नी और दो बच्चों का नाम भी बदल लिया है। ईसाई धर्म से सनातन धर्म में परिवर्तन होने के बाद भोला दास अब उत्तराखंड की संस्कृति, यहां की आबोहवा और गांव के लोगों में ऐसा रच-बस गए हैं कि उन्हें न तो अपने देश की याद आती है और न ही किसी की कमी महसूस होती है।
भोला दास के यहां रहने के बाद से गांव के आसपास के लोग अब भोला दास और उसके परिवार को कहीं जाने नहीं देना चाहते। भोला दास के बच्चे देहरादून में पढ़ते हैं। फर्राटेदार इंग्लिश बोलने वाले पति-पत्नी अब हिंदी में बात करते हैं। भोला दास की पत्नी बेहद शर्मीली है। लिहाजा गांव के बुजुर्गों के सामने हमेशा घूंघट डाले रहती है। भोला दास के घर पहुंचने के बाद जरा भी यह नहीं लगेगा कि यह किसी विदेशी का घर है। भोला के घर में खेतीबाड़ी का सारा सामान मिलेगा। चूल्हे में बनती हुई रोटी मिलेगी, चूल्हे के धुएं से काली होती घर की छत मिलेगी। बाहर रंग बिरंगे फूल भी खिलते मिलेंगे। सबसे खास बात भारत माता का तिरंगा भोला दास के घर की शोभा बढ़ाता है। भोला का कहना है कि भारत और यहां के लोगों के साथ-साथ उत्तराखंड से उसे इतना लगाव हो गया है कि अब वो भूल चुका है कि वह स्विट्जरलैंड में रहा करता था।
आज भी स्विट्जरलैंड सरकार उसे पेंशन के तौर पर अच्छी खासी रकम देती है जिससे वह अपने परिवार और गांव वालों का बहुत सहयोग करता है। इतना ही नहीं शादी-विवाह, नाच-गाना, सुख-दुख हर समय में भोला दास और उसका परिवार गांव वालों के साथ रहता है।भोला दास और उसके परिवार से गांव के लोग भी बेहद खुश हैं, लेकिन भोला गांव की एक परेशानी से इतना परेशान है कि वह सरकारी अफसरों के भी सामने अपनी गुहार लगा चुका है। दरअसल, भोला का कहना है कि वह पौड़ी के बंदरों से इतना परेशान है कि आए दिन सरकारी दफ्तरों में भी चक्कर काट रहा है। इतना ही नहीं बंदर उसकी खेती और उसके फूल पत्तियों को रोज नुकसान पहुंचाते हैं।
गांव वालों से भी मिला प्यार और साथ
इन सब कठिन हालातों से जूझते हुए गांव वालों के साथ और प्यार के साथ भोला दास और उसका परिवार मजे में उत्तराखंड के पहाड़ों में जिंदगी बिता रहा है और यही संदेश दे रहा है कि जो लोग छोटी मोटी समस्याओं को देखने के बाद उत्तराखंड से पलायन कर जाते हैं उन्हें ऐसा नहीं करना चाहिए। साथ ही उत्तराखंड के उन लोगों को भी उत्तराखंड आने का दोबारा आग्रह करता है जो पहाड़ छोड़ निचले इलाकों में बस गए हैं।