जब एक युवा ने एमएनसी की नौकरी छोड़ की ”संस्कृति” की शुरुआत

0
1514

शिक्षा एक ऐसा धन है जो बांटने से कम नहीं होता बढ़ता जरुर है, ऐसे ही एक युवा पिछले दस सालों से बच्चों के लिए शिक्षा का ऐसा माध्यम बन चुके हैं जो शायद स्कूल और कालेजों से हटकर हैं।  हम बात कर रहे हैं जोगिंदर रोहिला की जिन्होंने साल 2007 में अपने घर में लाइब्रेरी खोलकर यह नेक शुरुआत की थी और आज अलग-अलग राज्यों में इनकी लगभग 20 लाइब्रेर बच्चों की शिक्षा के लिए काम कर रही हैं।

32 साल के जोगिंदर रोहिला वैसे तो बहादुरगढ़ हरियाणा के रहने वाले हैं लेकिन आजकल वह देहरादून में रह रहे हैं।यू तो जोगिंदर ने एशिया, यूरोप और साउथ अमेरिका जैसे देशों में टीसीएस जैसी मल्टीनेशनल कंपनी में भी काम किया है, लेकिन अब वह एक एंटरप्रेन्योर की तरह काम रहें हैं।

sanskriti

जोगिंदर की अपनी एक आईटी कंपनी है, इसके अलावा वह अपने एनजीओ ‘संस्कृति’ के माध्यम से बच्चों को शिक्षा देने का प्रयास कर रहे हैं।साल 2007 में उन्होंने पहली लाइब्रेरी अपने घर में खोल कर इसकी पहल की थी। फिर वह ना रुके ना झुके, बस आगे बढ़ते गए और आज भारत के अलग-अलग कोनों में उनकी 20 से भी ज्यादा लाइब्रेरी चल रही हैं।

जोगिंदर रोहिला से टीम न्यूजपोस्ट की खास बातचीत में उन्होंने बताया कि, “वह बहुत नीचे स्तर से शिक्षा के क्षेत्र में बदलाव लाना चाहते थे” और इसी सोच के साथ उन्होंने ‘संस्कृति’ एनजीओ की शुरुआत की।जोगिंदर मानते हैं कि, “किसी भी काम को करने के लिए दृढ़ इच्छाशक्ति की जरुरत होती और दृढ़ता से किया कोई भी काम असफल नहीं होता।”

बीस से भी अधिक लाइब्रेरी के बाद जोगिंदर लाइब्रेरी की संख्या सौ तक पहुंचाने की चाहत रखते हैं।जोगिंदर की ख्वाहिश है कि वह ‘संस्कृति करियर गाइडेंस’ के माध्यम से कम से कम 10 हजार बच्चों तक पहुंचे और उन्हें शिक्षित कर सकें। देहरादून में रहते हुए जोगिंदर जल्द ही उत्तराखंड में भी अपनी लाइब्रेरी शुरु करने वाले हैं जिसमें से एक दून में तो दूसरा पहाड़ी गांव डूंगा में स्थापित करने की कोशिश कर रहें है।जोगिंदर के इस पहल में उनके परिवार व दोस्तों ने उनका पूरा सहयोग किया।

15977631_1338869339485960_6366658581329767816_n

आपको बतादें कि जोगिंदर द्वारा खोली गई लाइब्रेरी में बच्चें बिना किसी शुल्क के किताबें पढ़ सकते हैं और शिक्षित हो सकते हैं।जोगिंदर से यह पूछने पर कि क्या इन लाइब्रेरी से समाज में कुछ बदलाव आ रहा? जोगिंदर का कहना था कि, “मेरे हिसाब से लाइब्रेरी का होना बच्चों के लिए एक अलग मौका है अपने विषय से हटकर कुछ अलग पढ़ने का। एक ऐसा जरिया है जो हर बच्चें को पसंद होता है।बहुत से बच्चे लाइब्ररी में जाते हैं और पढ़ाई करते है जिससे उनकी रिडिंग स्किल बेहतर होती है।”

जोगिंदर द्वारा खोली गई लाइब्रेरी ना केवल बच्चों के लिए बल्कि उनके मां-बांप के लिए भी बड़ी उपलब्धि है जिसके माध्यम से वह अपने बच्चों को और अधिक शिक्षित बना सकते हैं। ‘संस्कृति’ एनजीओ के अलावा जोगिंदर ने हाल में ही अपनी पहली किताब ‘ड्रिम्स ‘भी लॉंच की है जिसके लिए टीम न्यूजपोस्ट उनहें बहुत सारी शुभकामनाएं देता है।