सियासी दलों की नजरें अब 2022 के विधानसभा चुनाव पर टिक गई हैं। यही कारण है कि कोरोना काल में भी इनकी गतिविधियां दिन-ब-दिन बढ़ती जा रही हैं। आम आदमी पार्टी (आप) इस चुनाव में अपनी धमाकेदार उपस्थिति का दावा ठोक रही है। शहरों में उसके कार्यकर्ताओं की गतिविधियां दिखने लगी हैं मगर गांवों में आप गायब है। आप की आहट से भाजपा से ज्यादा कांग्रेस के खेमे में बेचैनी दिख रही है।
उत्तराखंड में भले ही कांग्रेस का संगठन पिछले 10 साल में रसातल में चला गया हो, लेकिन भाजपा के रणनीतिकारों से पूछा जाए तो वह आने वाले चुनाव में कांग्रेस को ही दुश्मन नंबर एक मानकर अपनी तैयारी में व्यस्त है। इसकी वजह है कि कांग्रेस का कैडर आज भी गांव-गांव मौजूद है। इस बीच भाजपा ने संगठनात्मक स्तर पर अपने को पहाड़ के हर कोने में बहुत ज्यादा मजबूत किया है।
आप दिल्ली में बही हवा का रुख उत्तराखंड की तरफ मोड़ने की कोशिश में है जो कि उसके मौजूदा संगठन और नेतृत्व को देखते हुए बहुत ही मुश्किल दिखता है। फिर भी, उसकी गतिविधियों में तेजी तो आई है। कभी कभार अरविंद केजरीवाल की आवाज में मोबाइल पर लोगों को आप के संदेश सुनने के लिए मिल रहे हैं। यह स्पष्ट संकेत हैं कि आप उत्तराखंड को लेकर इस बार गंभीर है। हालांकि चुनाव में वह कर कितना पाएगी, यह देखने वाली बात होगी।
इन स्थितियों के बीच, भाजपा की आप की गतिविधियों पर नजर है। हालांकि उसमें बेचैनी जैसी बात ज्यादा नहीं दिखती। कांग्रेस जरूर बेचैन है। इसकी वजह है कि कांग्रेस मानकर चल रही है कि पांच साल बाद भाजपा सरकार के कामकाज को आधार बनाकर एंटी इनकमबेंसी का वह लाभ लेने की एकमात्र अधिकारी होगी। आप यदि कुछ एक जगहों पर भी मजबूत होती है, तो वह भाजपा विरोधी वोटों का बंटवारा करके उसका खेल बिगाड़ सकती है। हालांकि आप उत्तराखंड में एक बार लोकसभा चुनाव का अनुभव हासिल कर चुकी है। उसका अनुभव अच्छा नहीं रहा है। विधानसभा के अपेक्षाकृत छोटे चुनाव में वह असरकारी प्रदर्शन की उम्मीद कर रही है। इन सारी स्थितियों पर कांग्रेस के नेता मानते हैं कि उत्तराखंड में आज भी भाजपा का एकमात्र विकल्प कांग्रेस ही है। कांग्रेस प्रवक्ता गरिमा दसौनी के अनुसार, कांग्रेस न सिर्फ उत्तराखंड, बल्कि पूरे देश में भाजपा को सत्ता से हटाकर बेहतर शासन देने में सक्षम है। इस बात को लोग अच्छी तरह से जानते हैं।