‘आलम आरा’ से सिनेमा के पर्दे पर गूंजी थी हिन्दी

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नई दिल्ली,  आज हिन्दी दिवस के मौके पर हम बात करेंगे प्रथम बोलती हिन्दी फिल्म ‘आलम आरा’ की जिससे जागा था आवाज का जादू और बोल उठी थी तस्वीरें। इस फिल्म का निर्देशन किया था अर्देशिर ईरानी ने। यह फिल्म 14 मार्च, 1931 को रिलीज की गई थी।

आलम आरा से मूक फिल्मों का दौर हुआ खत्म 
आलम आरा पहली बोलती हिन्दी फिल्म थी जिसने मूक फिल्मों के दौर का अंत किया था। ‘आलम आरा’ हिन्दी सिनेमा की पहली फिल्म ‘राजा हरिश्चन्द्र’ के 18 साल बाद प्रदर्शित की गई थी। राजा हरिश्चन्द्र का निर्देशन हिन्दी सिनेमा के पितामाह दादा साहेब फाल्के ने किया था।।

क्या था आलम आरा का बजट
आलम आरा तब 40,000 के बजट में तैयार की गई थी। इस फिल्म का प्रसिद्ध गाना था ‘दे दे ख़ुदा के नाम पे प्यारे, ताक़त हो अगर देने की’, ‘बलमा कहीं होंगे’। इस फिल्म के गीत लिखे थे फ़िरोज़शाह एम मिस्त्री और बी. ईरानी ने एवं अवाज दी थी फ़िरोज़शाह एम. मिस्त्री और अलकनंदा ने।

फिल्म के निर्माता, एडिटर एवं लेखक 
इस फिल्म के निर्माता थे इंपीरियल मूविटोन, फिल्म की पटकथा लिखी थी लेखक जोसफ डेविड ने एवं फिल्म की एडिटिंग की थी इज़रा मीर ने।

कौन थे नायक और नायिका
फिल्म में हीरो के किरदार में थे मास्टर विट्ठल और हिरोइन थीं ज़ुबैदा। इस फिल्म में पृथ्वीराज कपूर की भी अहम भूमिका में थे। राजकुमार और बंजारिन की प्रेम कहानी पर आधारित यह फिल्म एक पारसी नाटक से प्रेरित थी। 
वजीर मोहम्मद खान ने इस फिल्म में फकीर की किरदार निभाया था। फिल्म में एक राजा और उसकी दो झगड़ालू पत्नियां दिलबहार और नवबहार हैं। दोनों के बीच झगड़ा तब और बढ़ जाता है जब एक फ़कीर भविष्यवाणी करता है कि राजा के उत्तराधिकारी को नवबहार जन्म देगी। ग़ुस्साई दिलबहार बदला लेने के लिए राज्य के प्रमुख मंत्री आदिल से प्यार की गुहार करती है पर आदिल उसके इस प्रस्ताव को ठुकरा देता है। गुस्से में आकर दिलबहार आदिल को कारागार में डलवा देती है और उसकी बेटी आलम आरा को देश निकाला दे देती है।

आलम आरा को बंजारे पालते हैं। युवा होने पर आलम आरा महल में वापस आती है और राजकुमार से प्यार करने लगती है। अंत में दिलबहार को उसके किये की सज़ा मिलती है, राजकुमार और आलमआरा की शादी होती है और आदिल की रिहाई।

इस फिल्म से जुड़ा एक रोचक किस्सा 
आलम आरा में काम करने के लिए मास्टर विट्ठल ने शारदा स्टूडियोज के साथ अपना क़रार भी तोड़ दिया था। स्टूडियो ने बाद में मास्टर विट्ठल को अदालत में भी घसीटा और जिस व्यक्ति ने विट्ठल की पैरवी की वो कोई और नहीं, खुद मुहम्मद अली जिन्ना थे।
उल्लेखनीय है कि इस फिल्म के बारे में निर्देशक अर्देशिर ईरानी ने कहा था उस समय में कोई साउंड-प्रूफ़ स्टेज नहीं था। उन्होंने बताया था कि हमारा स्टूडियो एक रेलवे लाइन के पास था, इसलिए अधिकतर शूटिंग रात में करनी पड़ी, जब रेल की आवा-जाही कम होती थी।

अपने जमाने के दिग्गज कलाकार ए.के. हंगल ने कहा था, ‘‘आलम आरा जब रिलीज हुई थी तब मैं 18-20 साल का था। मैंने यह फिल्म पेशावर में देखी थी। इस फिल्म को अगर आज के हिसाब से देखा जाए तो फिल्म की अवाज एवं संपादन बहुत ही खराब था लेकिन तब के समय में इस फिल्म को देखकर हम दंग रह गए थे।’’