कुमाऊं विश्वविद्यालय नैनीताल के आईपीएसडीआर में छात्राओं ने हाथ से बनी सांस्कृतिक, मेडिकेटेड स्पर्श गंगा राखियों का प्रदर्शन किया। बीबीए की छात्रा स्वेता राणा ने बताया कि इन ‘स्पर्श गंगा राखियों’ में पहाड़ की परम्परागत औषधियों हल्दी, राई और कपूर का उपयोग किया गया है ,जो पानी से भीगने पर सेनेटाइजर का कार्य करेंगी। बीकॉम ऑनर्स की छात्रा दिव्या साह ने बताया कि इन राखियों को उत्तराखंड की लोक चित्रकला ‘ऐपण’ से सुसज्जित किया गया है जिससे हमारी परम्पराओं के प्रति जागरूकता उत्पन्न होगी। एमकॉम की छात्रा ऋचा पांडे ने बताया कि उन्होंने मेहँदी का उपयोग करते हुए राखियां तैयार की हैं।
स्पर्श गंगा अभियान के राष्ट्रीय समन्वयक एवं आईपीएसडीआर के निदेशक प्रो. अतुल जोशी ने बताया कि पूरे प्रदेश में इस अभियान से जुड़ी मातृशक्ति रक्षाबंधन के पवित्र त्योहार पर चाइनीज राखी का पूर्ण बहिष्कार करेंगी | माता बहनों ने स्वनिर्मित राखियों को ही भाइयों की कलाई पर बांधने का संकल्प लिया है। उन्होंने बताया कि इस अभियान से जुड़ी रुड़की निवासी गीता कार्की ने गंगा तट के खूबसूरत चमकीले पत्थरों तथा परम्परागत पूजा अर्चना में प्रयुक्त किए जाने वाले कलावा धागों से स्पर्श गंगा रक्षा सूत्र बनाए हैं। हरिद्वार में रीता चमोली, पिथौरागढ़ में मोहन जोशी, हल्द्वानी में डॉ. एसडी तिवारी एवं सोनल पाण्डे के नेतृत्व में भी स्पर्श गंगा राखियाँ तैयार की जा रही हैं।
बच्चों ने जंगली फल-फूलों व घासों से बनाईं ‘जैविक राखियां’
कोरोना की महामारी व लॉकडाउन के कारण स्कूल नहीं जा पा रहे बच्चे ऑनलाइन के माध्यम से शिक्षकों से बहुत कुछ सीख रहे हैं | इस दौरान बच्चों ने घास पत्तों और फूल से राखियां बन कर अपनी रचनात्मक कार्यों की बानगी पेश की है |
अल्मोड़ा जनपद के विकासखंड धौलादेवी के दूरस्थ ग्रामीण क्षेत्र में स्थित राजकीय प्राथमिक विद्यालय बजेला के बच्चों ने घास फूस फूल और पत्तों से राखियां बनाई हैं। इस विद्यालय में सहायक अध्यापक भास्कर जोशी ने बताया कि इस दौरान वे बच्चों को व्हाट्सएप के जरिये ऑनलाइन कक्षाएं चलाकर पढ़ा रहे हैं। साथ ही बच्चों से नये-नये क्रियाकलाप भी करा रहे हैं। इसी कड़ी में बच्चों ने इन दिनों मिलने वाले फूल, पत्तियों, मक्के के जंेेमस यानी नर फूल, बाबिल घास व घिंघारू के फलों आदि का प्रयोग कर 100 फीसद जैविक सामग्रियों से ‘जैविक राखियां’ तैयार की हैं। दिखने में बेहद सुंदर, बेमिसाल इन राखियों को बनाने में शून्य लागत आई है। शिक्षा के साथ-साथ बच्चों ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के ‘आत्मनिर्भर भारत’ ‘वोकल फॉर लोकल’ की एक बानगी पेश की है। जोशी ने कहा कि यह बच्चों की रचनात्मकता का अलग सोपान है। इस कोरोना काल में बच्चे विद्यालय से भौतिक रूप में दूर अवश्य हैं परंतु विभिन्न शैक्षिक व पाठ्य सहगामी क्रियाओं से अपनी रचनात्मकता का लगातार प्रदर्शन कर रहे हैं।