बंद कमरों में खराब हो रहे उपकरण, हवा हो रहे आयुष प्रदेश बनाने के दावे

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    देवभूमि उत्तराखंड को आयुष प्रदेश बनाने का सरकार के दावे हवा हवाई साबित हो रहा है। तमाम योजनाएं और सुविधाएं बंद कमरों व अलमारियों में धूल फांक रही है। यह हम नहीं बल्कि आयुष क्षेत्र में प्रदान की जाने वाली योजनाओं के ताजा हालात इसकी तस्दीक कर रहे हैं। आलम यह है कि नेशनल रूरल हेल्थ मिशन (एनएचएम) के तहत प्रदेशभर की आयुष विंग के लिए खरीदे गए पंचकर्म और फीजियोथेरेपी के उपकरण बिना खुले ही खराब हो रहे हैं।

    प्रदेश में आयुष को बढ़ावा देने और लोगों को आयुष चिकित्सा की ओर जागरूक करने के मकसद से कई यूनिटों को विकसित किया गया। सरकार ने आयुष क्षेत्र के प्रचार प्रसार के लिए कई योजनाएं भी शुरू की। अब यह तमाम योजनाएं और सुविधाएं अव्यवस्थाओं को दंश झेल रही हैं। इतना ही नहीं खोले आयुष के माध्यम से जन स्वास्थ्य की अलख जगाने के लिए सरकारी अस्पतालों में खोली गई पंचकर्म यूनिटों का हाल बुरा है। यहां एनएचएम की सहयता से जो उपकरण उपलब्ध कराए गए वे बंद कमरों में सड़ रहे हैं। मौजूदा स्थिति यह है कि देहरादून में कालसी, पिथौरागढ़ में वड्डा एवं मुंसियारी। टिहरी में नरेंद्रनगर आदि जगहों में आयुष विंगों में नेशनल रूरल हेल्थ मिशन के तहत खरीदे गए पंचकर्म एवं फीजियोथेरेपी के उपकरण बिना खुले ही खराब हो रहे है। यही हाल बागेश्वर, अल्मोड़ा, रुद्रप्रयाग और चमोली आदि जनपदों में भी है।

    न चिकित्सक – न दवाएं, नाम की सुविधाएं
    प्रदेशभर में स्थापित आयुष यूनिटों की बात करें तो यहां नाम को ही यूनिट खोली गई। विभाग और सरकारी दावों की पोल इसी बात से खुलती हैे कि इन यूनिटों को खोलने के बाद यहां चिकित्सकों की व्यवस्था तक नहीं की गई। अधिकांश पंचकर्म यूनिटों में चिकित्सक हैं ही नहीं। यूनिटों में पंचकर्म सहायक तक नहीं हैं। इतना ही नहीं विभाग यूनिट में सीमित दवाएं ही भेजता है, लिहाजा दवाइयों का भी टोटा बना रहता है। कई बार स्थिति यह होती है कि मरीज को बाहर की दवाइयां लिखकर दी जाती हैं। यूनिटों की संख्या पर गौर करें तो प्रत्येक जनपद में तीन से चार पंचकर्म यूनिट हैं। इनमें से कुछ अपग्रेडेड यूनिट हैं। कुछ को छोड़ बांकि सारी यूनिटों पर ताला पड़ा है।

    क्या है पंचकर्म
    शरीर की शुद्धि की प्राचीन आयुर्वेदिक पद्धति है पंचकर्म। आयुर्वेद के अनुसार शोधन चिकित्सा एवं शमन चिकित्सा दो प्रकार होते हैं। जिन रोगों से मुक्ति औषधियों द्वारा संभव नहीं होती, उन रोगों के कारक दोषों को शरीर से बाहर कर देने की पद्धति शोधन कहलाती है। यही शोधन चिकित्सा पंचकर्म है। पंचकर्म विधि से शरीर को विषैले तत्वों से मुक्त बनाया जाता है। इससे शरीर की सभी शिराओं की सफाई हो जाती है और शरीर के सभी सिस्टम ठीक से काम करने लगते हैं। पंचकर्म के जरिए रोग प्रतिरोधक क्षमता में भी वृद्धि होती है।

    डॉ अरुण कुमार त्रिपाठी, निदेशक आयुर्वेद ने कहा कि जिन यूनिटों में उपकरण रखे-रखे खराब हो रहे हैं। वहां से उपकरण ऐसी यूनिटों में स्थानांतरित किया जाएगा, जहां उनका उपयोग हो सके। इसे लेकर जिलों के संबंधित अधिकारियों को निर्देश दे दिए गए हैं।