वाजपेयी ने बीजेपी को सियासत में शून्य से शिखर तक पहुंचाया

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(नई दिल्ली) अटल बिहारी वाजपेयी का जन्‍म 25 दिसंबर 1924 को हुआ, इस दिन को भारत में बड़ा दिन कहा जाता है। फिलहाल स्वास्थ्य खराब होने के कारण वो सक्रिय राजनीति से अलग थे, उनकी तबीयत बिगड़ जाने के जाने चलते उन्हें दिल्ली के एम्स में भर्ती कराया गया था,जहां उन्होंने अपनी आखिरी सांसे ली।

जनसंघ, जनता पार्टी और बाद में बीजेपी की नींव रखने वाले चेहरों में से एक नाम अटल बिहारी वाजपेयी का भी है। 6 अप्रैल 1980 को बीजेपी का गठन हुआ, एक राजनीतिक दल के रूप में पहले लोकसभा चुनाव में पार्टी के खाते में महज दो सीटें ही आई थी। इसके बावजूद वाजपेयी ने हार नहीं मानी और उन्होंने कहा था, ‘अंधेरा छंटेगा, सूरज निकलेगा, कमल खिलेगा।’ इसी का नतीजा है कि मौजूदा समय में केंद्र की सत्ता से लेकर देश की 20 राज्यों में बीजेपी की सरकारें हैं।

देश के राजनीतिक इतिहास में बीजेपी ने जब एंट्री की थी तो उस समय शायद ही किसी ने भी सोचा होगा कि एक दिन पार्टी देश के आधे हिस्से में सत्ता संभाल रही होगी। बीजेपी को शून्य से शिखर तक पहुंचाने में वाजपेयी ने सबसे अहम भूमिका अदा की।

वाजयेपी 1942 में राजनीति में उस समय आए, जब भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान उनके भाई 23 दिनों के लिए जेल गए। 1951 में वाजपेयी ने आरएसएस के सहयोग से भारतीय जनसंघ पार्टी बनाई जिसमें श्‍यामा प्रसाद मुखर्जी जैसे नेता शामिल हुए।

1957 में वाजपेयी पहली बार बलरामपुर संसदीय सीट से चुनाव जीतकर राज्‍यसभा के सदस्‍य बने। वाजपेयी के असाधारण व्‍यक्तित्‍व को देखकर उस समय के वर्तमान प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू ने कहा था कि आने वाले दिनों में यह व्यक्ति जरूर प्रधानमंत्री बनेगा। 1968 में वाजपेयी राष्‍ट्रीय जनसंघ के राष्‍ट्रीय अध्‍यक्ष बने, उस समय पार्टी के साथ नानाजी देशमुख, बलराज मधोक तथा लालकृष्‍ण आडवाणी जैसे नेता थे।

1975-77 में आपातकाल के दौरान वाजपेयी अन्‍य नेताओं के साथ उस समय गिरफ्तार कर लिए गए, जब वे आपातकाल के लिए इंदिरा गांधी की आलोचना कर रहे थे। 1977 में जनता पार्टी के महानायक जयप्रकाश नारायण के नेतृत्‍व में आपातकाल का विरोध हो रहा था।

जेल से छूटने के बाद वाजयेपी ने जनसंघ का जनता पार्टी में विलय कर लिया। 1977 में हुए लोकसभा चुनाव में जनता पार्टी की जीत हुई थी और वे मोरारजी भाई देसाई के नेतृत्‍व वाली सरकार में विदेश मामलों के मंत्री बने।

विदेश मंत्री बनने के बाद वाजपेयी पहले ऐसे नेता थे जिन्‍होंने संयुक्‍त राष्‍ट्र महासंघ को हिन्‍दी भाषा में संबोधित किया। जनता पार्टी की सरकार 1979 में गिर गई, लेकिन उस समय तक वाजपेयी ने अपने आपकी एक अनुभवी नेता व वक्‍ता के रूप में पहचान बना ली।

इसके बाद जनता पार्टी अंतर्कलह के कारण बिखर गई और 1980 में वाजपेयी के साथ पुराने दोस्‍त भी जनता पार्टी छोड़ भारतीय जनता पार्टी से जुड़ गए। वाजपेयी बीजेपी के पहले राष्‍ट्रीय अध्‍यक्ष बने और वे कांग्रेस सरकार के सबसे बड़े आलोचकों में शुमार किए जाने लगे।

1994 में कर्नाटक, 1995 में गुजरात और महाराष्‍ट्र में पार्टी जब चुनाव जीत गई उसके बाद पार्टी के तत्कालीन अध्‍यक्ष लालकृष्‍ण आडवाणी ने वाजपेयी को प्रधानमंत्री पद का उम्‍मीदवार घोषित कर दिया था।

वाजपेयी 1996 से लेकर 2004 तक 3 बार प्रधानमंत्री बने। 1996 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी देश की सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी और वाजपेयी पहली बार प्रधानमंत्री बने। हालांकि उनकी सरकार 13 दिनों में संसद में पूर्ण बहुमत हासिल नहीं करने के चलते गिर गई।

1998 के दोबारा लोकसभा चुनाव में पार्टी को ज्‍यादा सीटें मिलीं और कुछ अन्‍य पार्टियों के सहयोग से वाजपेयी ने एनडीए का गठन किया और वे फिर प्रधानमंत्री बने। यह सरकार 13 महीनों तक चली, लेकिन बीच में ही जयललिता की पार्टी ने सरकार का साथ छोड़ दिया जिसके चलते सरकार गिर गई। 1999 में हुए लोकसभा चुनाव में बीजेपी फिर से सत्‍ता में आई और इस बार वाजपेयी ने अपना कार्यकाल पूरा किया।