ऑक्सीजन की किल्लत: टूटती सांसों को बीएचईएल दे रहा सहारा

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ऑक्सीजन
देश में हर दिन कोरोना मरीजों की संख्या बढ़ रही है। दुखद यह है कि कोरोना मरीजों में मौत की सबसे बड़ी वजह ऑक्सीजन की कमी बन रही है। इसे देखते हुए हरिद्वार स्थित बीएचएल (भेल) ने देश में आक्सीजन की सप्लाई का जिम्मा उठाया है। यहां से उत्तर प्रदेश, दिल्ली, हरियाणा आदि राज्यों को  ऑक्सीजन की सप्लाई की जा रही है। बीएचएल में अब तक सिर्फ अपने प्लांट के लिए ही ऑक्सीजन बनाई जाती थी।
मगर देश में आई ऑक्सीजन आपदा के बाद इस संस्थान ने जिम्मेदारी निभाते हुए मदद के हाथ आगे बढ़ाए।महज दो दिनों के भीतर ही पूरा प्लांट इस बात के लिए तैयार हुआ कि इस नाजुक दौर में हरिद्वार का ये संस्थान देश में सांसों का सप्लाई सेंटर बनेगा। भेल के ईडी से लेकर तमाम ऑपरेशन से जुड़े लोगों ने अपने प्लांट को रातों-रात अपग्रेड किया। फिर शुरू हुआ ऑक्सीजन बनाना और उसे जरूरतमंद राज्यों तक पहुंचाने का सिलसिला।
प्लांट से जुड़े नवीन कौल बताते हैं कि जब उन्हें अपने उच्च अधिकारी और कोविड-19 बीमारी से जूझ रहे ईडी से सूचना मिली कि उन्हें 24 घंटे के अंदर ऑक्सीजन बनाने का काम शुरू करना है। पहले तो वे समझ ही नहीं पाये कि वे ऐसा करेंगे कैसे? क्योंकि इसके लिए उनके पास समय बहुत कम था। फिर उन्होंने सोचा बीएचएल ने हमेशा से ही कठिन परिस्थितियों में देश का साथ दिया है, लिहाजा उन्होंने रातों-रात कंट्रोल रूम तैयार किया। दो ऑक्सीजन प्लांट को और उन में लगे कर्मचारियों को यह बताया गया कि अब हमें देश के लिए ऑक्सीजन बनानी है। लिहाजा हमने 21 अप्रैल के बाद से लोगों के लिए ऑक्सीजन बनाने का काम शुरू कर दिया।
नवीन कौल बताते हैं कि उन्हें गर्व है कि वह इस पूरे मिशन का हिस्सा बन रहे हैं। जब उन्होंने शुरुआत की थी तो मात्र 200 से 300 सिलेंडर वे हर दिन दे पा रहे थे। मगर एक हफ्ते के भीतर ही उन्होंने अपनी टीम के साथ दिल्ली, हरियाणा, उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड की जरूरत को पूरा करने का टारगेट बनाया। इसके लिए उन्होंने 1800 से 2000 तक सिलेंडर हर दिन तैयार करने का प्रयास किया। उन्हें उम्मीद है कि आने वाले समय में बीएचईएल और तेजी से देश के अस्पतालों में ऑक्सीजन पहुंचाने का काम शुरू करेगा।
उनका कहना है कि बीएचएल के अभी दो प्लांट पूरी तरह से चल रहे हैं, जहां पर न केवल ऑक्सीजन बनाने का काम बल्कि ऑक्सीजन रिफिलिंग का काम भी तेजी से हो रहा है। कौल कहते है कि गेट से अंदर आने वाली हर गाड़ी हमें यह एहसास कराती है कि हमारे प्लांट से निकलने वाली ऑक्सीजन न जाने कितने लोगों की जिंदगियां बचाएगी।
प्लांट से जुड़े सुरेंद्र कुमार (50) वर्ष से ऊपर हो चुके हैं। वे कहते हैं कि जब उन्हें यह कहा गया कि स्टाफ को बढ़ाना है और सारा मैन पावर लगाकर ये काम करना है तो उन्होंने तीन शिफ्ट में काम करने का फैसला किया। इसके लिए 100 से अधिक लोगों को तैनात किया गया। जिस प्लांट में लगभग 30 से 35 लोग ही काम करते थे। आज उस प्लांट में सुबह, शाम और रात को लगभग
सवा सौ लोग काम कर रहे हैं।
सुरेंद्र बताते हैं कि यह प्लांट 24 घंटे चल रहा है। उनका कहना है कि जितना हम काम करेंगे उतनी ज्यादा ऑक्सीजन हम बना पाएंगे, जिससे न जाने कितने लोगों की जिंदगियां बचेंगी। फिलहाल उनके पास हरियाणा, दिल्ली, उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड के साथ-साथ तमाम राज्यों से गाड़ियां आ रही हैं। जो भी गाड़ी आती हैं उनकी कोशिश रहती है कि वो यहां से खाली न जाए। यहां एक घंटे के अंदर लगभग प्लांट में 40 सिलेंडर भरे जा रहे हैं, हालांकि बीएचएल के ही कैंपस में अब एक और प्लांट तैयार किया जा रहा है जो 2 दिन के अंदर तैयार हो जाएगा। यह प्लांट भी ठीक वैसे ही काम करेगा जैसे मौजूदा हालातों में टेंपरेरी प्लांट काम कर रहे हैं।