चंद्रमा के रहस्यलोक की अनदेखी परतों को खोलने निकला चंद्रयान-2

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नई दिल्ली,  भारत की वैज्ञानिक मेधा को पुख़्ता कर दुनिया की विज्ञान संपदा को समृद्ध करने का वो क्षण भी आखिरकार आ गया, जिसके पीछे भारतीय वैज्ञानिकों के वर्षों का ख़्वाब आकार ले रहा था।`बाहुबली’ पर सवार होकर चंद्रयान-2 का सपनों सरीखा सफ़र शुरू हो गया। चंद्रमा के मायालोक को क़रीब से जानने, उसके रहस्यों की परतें खोलने में भारत का यह वैज्ञानिक अनुष्ठान, भारत सहित पूरी दुनिया के लिए काफी अहम माना जा रहा है।

पृथ्वी से चंद्रमा की दूरी तक़रीबन 3 लाख 84 हजार किलोमीटर है। इंडियन स्पेस रिसर्च ऑर्गेनाइजेशन (इसरो) का सबसे महत्वपूर्ण माना जा रहा चंद्रयान-2 का सफ़र पृथ्वी से चंद्रमा की इसी दूरी को तय करने के लिए श्रीहरिकोटा के सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से सोमवार को दिन के 2 बजकर 43 मिनट पर शुरू हो गया। अपनी लॉन्चिंग के तक़रीबन 54 दिनों की यात्रा के बाद चंद्रयान-2 12 या 13 सितंबर को चांद के दक्षिणी सतह पर उतरेगा।

दक्षिणी ध्रुव पर पहली बार भारत ही पहुंचेगा

वैसे तो इस मिशन की कामयाबी के साथ ही भारत दुनिया के उन देशों की अहम सूची में शामिल हो जाएगा जिसमें रूस, अमेरिका और चीन शामिल हैं। भारत इस सूची में चौथे नंबर पर शामिल होगा, जो अपना यान चंद्रमा पर उतारेगा लेकिन इस सूची में पहले से शामिल तीन देशों के बरअक्स भारत का मिशन अलग और नितांत मौलिक भी है। चंद्रयान-2 चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर उतरने जा रहा है जो दुनिया के लिए अबतक अनदेखा है। भारत से पहले किसी भी देश ने ऐसा नहीं किया है। इस मिशन की लागत एक हजार करोड़ रुपये है। लागत के हिसाब से भी यह अन्य देशों की तुलना में कम है।

स्वदेशी तकनीक का इस्तेमाल

ख़ास बात यह है कि चंद्रयान-2 स्वदेशी तक़नीक से बना है। 13 पेलोड वाले चंद्रयान-2 में आठ ऑर्बिटर में, तीन पेलोड लैंडर विक्रम और दो पेलोड रोवर प्रज्ञान में हैं। विक्रम और प्रज्ञान जैसे नामों पर ग़ौर करें तो यह भी कम दिलचस्प नहीं है। भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान कार्यक्रम के जनक डॉ.विक्रम साराभाई के नाम पर इसे विक्रम का नाम दिया गया है जबकि प्रज्ञान का मतलब मेधा से है।

बाहुबली की ताक़त

इस मिशन की सफलता का एक बड़ा भार `बाहुबली’ पर है। चंद्रयान-2 को जीएसएलवी मैक-3 द्वारा प्रक्षेपित किया गया है, जिसे आमतौर पर `बाहुबली’ का नाम दिया गया है। इस नाम के पीछे वज़ह यह है कि यह चार टन क्षमता तक के उपग्रह को ले जाने की ताकत रखता है।

खोज से क्या होगा हासिल

चंद्रयान-2 की कामयाबी से चंद्रमा की सतह पर पानी की मात्रा का अध्ययन किया जा सकेगा। इसके साथ ही चंद्रमा के मौसम और वहां मौजूद खनिज तत्वों का अध्ययन भी किया जा सकेगा। इस खोज में यह भी संभव है कि चंद्रयान-2 ऐसी बेशकीमती खोज तक पहुंच जाए, जिससे लंबे कालखंड तक ऊर्जा की जरूरतें पूरी हो सकती हैं। ऊर्जा का यह स्रोत दूसरे तमाम स्रोतों के मुकाबले प्रदूषण से मुक्त होने की भी संभावना है लेकिन फिलहाल यह भविष्य के गर्भ में है। इस मिशन के लिए 54 दिनों का हर क्षण एक परीक्षा है, जब चंद्रयान-2 चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव की सतह पर उतरेगा। नतीजे तक पहुंचने के लिए वक्त और उसकी चुनौतियां जरूर हैं लेकिन इस दिशा में भारतीय वैज्ञानिक अपना कदम बढ़ा चुके हैं।