उत्तराखंड की चारधाम यात्रा की शुरुआत के लिए काउंटडाउन शुरू हो गया है, लेकिन कोरोना के कहर के चलते स्थिति सामान्य नहीं है। दुनिया भर में खौफ पैदा करने वाले कोरोना वायरस के संक्रमण के कारण चारधाम यात्रा का उत्साह कहीं भी नहीं दिख रहा। इन स्थितियों में चारधाम यात्रा एक बार फिर सात साल पहले वाली स्थिति में पहुंच गई है। तब केदारनाथ आपदा के कारण लोगों ने उत्तराखंड से मुंह मोड़ लिया था। बमुश्किल पटरी पर आई चारधाम यात्रा का एक बार फिर बेपटरी होना तय माना जा रहा है।
-कोरोना के कहर के चलते इस बार यात्रा की सफलता पर संकट
-2013 में केदारनाथ आपदा के कारण पटरी से उतर गई थी यात्रा
अक्षय तृतीया के मौके पर 26 अप्रैल को गंगोत्री और यमुनोत्री धाम के कपाट खुलते ही चारधाम यात्रा का श्रीगणेश होता है। अभी जो स्थिति है, उसमें यह तय है कि इस बार धार्मिक पंरपराओं का निर्वहन तो होगा, लेकिन श्रद्धालुओं की उपस्थिति पहले जैसी नहीं होगी। 2013 में केदारनाथ आपदा के बाद अगले साल जब यात्रा शुरू हुई थी, तो पूरे उत्तराखंड आने वाले श्रद्धालुओं की संख्या दो लाख पर सिमट गई थी। इससे पहले 2012 में चारधाम यात्रा में 25 लाख से ज्यादा श्रद्धालुओं ने हिस्सा लिया था।
पहले कांग्रेस की हरीश रावत सरकार और बाद में केंद्र में मोदी सरकार के प्रयासों का नतीजा रहा कि चारधाम यात्रा धीरे-धीरे पटरी पर आ गई। खास तौर पर केदारनाथ के प्रमोशन में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी इस कदर जुटे थे, कि वहां पहुंचने वाले श्रद्धालुओं की संख्या में अप्रत्याशित ढंग से बढ़ोतरी हो गई थी। 2019 में केदारनाथ पहुंचने वाले श्रद्धालुओं की संख्या ने पहली बार दस लाख का आंकड़ा छुआ। माना जा रहा था कि पिछले साल की यात्रा की सफलता से दो कदम आगे इस बार यात्रा निकल जाएगी। पिछली बार मई के पहले सप्ताह में धामों के कपाट खुले थे। चारधाम यात्रा पर शासकीय प्रवक्ता और कैबिनेट मंत्री मदन कौशिक का कहना है कि कोरोना के संकट ने पूरी दुनिया का जनजीवन अस्त-व्यस्त किया है। उत्तराखंड भी कोरोना की चुनौती का मजबूती से सामना कर रहा है। ऐसे में बहुत सारी चीजों पर असर पड़ना स्वाभाविक है। सरकार स्थितियों की समीक्षा करते हुए यात्रा और अन्य मामलों में उचित निर्णय लेगी।