2022 उत्तराखंड में विधानसभा चुनाव के लिए चुनाव वर्ष है। चुनाव में भले ही लगभग एक वर्ष का समय रह गया हो, लेकिन राजनीतिक पार्टियों के लिए यह समय काफी कम है। एक वर्ष पूर्व ही जहां प्रदेश में भाजपा पूरी तरह से चुनावी मोड में आ गई है वहीं कांग्रेस अभी अंतर्कलह में उलझी हुई है। कांग्रेस के कुछ कार्यकर्ता जहां आगामी चुनाव में पूर्व सीएम हरीश रावत को चेहरा बनाने की पैरवी कर रहे हैं, वहीं कुछ लोग उनको चुनावी चेहरा बनाने पर आपत्ति जता रहे हैं।
कुर्सी की दौड़ में कांग्रेस नेता आलाकमान के सामने तो एकजुटता के दावे करते हैं लेकिन प्रदेश में पार्टी नेताओं के बीच की अंतर्कलह खुलकर सामने आ रही है। वर्ष 2017 के विधानसभा चुनाव में मिली हार के लिए कांग्रेस नेता पूर्व सीएम हरीश रावत पर आरोप लगा रहे हैं। यह लोग कह रहे हैं कि उनकी वजह से कांग्रेस 11 सीटों पर सिमट गई। इसके जवाब में अब हरदा ने खुद को प्रदेश कांग्रेस से अलग करने की बात कह दी है। उनका कहना है कि उनको चुनावी चेहरा बनाने में अगर किसी को आपत्ति है तो वे नहीं बनेंगे चुनावी चेहरा।
रावत का कहना है कि अगर उनकी शक्ल लोगों को पसंद नहीं है तो वे नहीं जाएंगे प्रदेश कांग्रेस के कार्यक्रमों में। उन्होंने कहा कि वे बहुत दिनों से सुन रहे हैं कि उनकी वजह से कई लोग रूठ गए और दूसरी पार्टी में चले गए। उन्होंने कहा कि अगर लोगों को लगता है कि उनकी वजह से हार मिली है तो वे खुद को प्रदेश कांग्रेस से अलग करते हैं।
उत्तराखंड में जहां इस समय भाजपा पूरी तरह से चुनावी मोड में है और भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष का चार दिवसीय उत्तराखंड दौरा भी है, वहीं कांग्रेस आरोप-प्रत्यारोप में उलझी हुई है। एक तरफ भाजपा के कार्यकर्ताओं को दायित्व बांटकर अभी से चुनाव तैयारियों में जुट रही है। वहीं कांग्रेस में कुर्सी के लिए मारामारी हो रही है। यहां तक कि भाजपा के राष्ट्रीय नेताओं के दौरे उत्तराखंड में हो रहे हैं। बूथ लेबल तक कार्यकर्ताओं को जुटने का आह्वान किया जा रहा है तो वहीं वर्ष 2017 के बाद कांग्रेस के बड़े नेताओं ने उत्तराखंड की ओर झांकने की जरूरत भी नहीं समझी है।
अब फिलहाल कांग्रेस चुनावी चेहरे को लेकर उलझी है तो पदाधिकारियों और कार्यकर्ताओं में अभी से टिकट के लिए जोड़-घटाव का सिलसिला भी चल रहा है। भले ही ऊपरी तौर पर संगठन से कोई कुछ भी बोलने से कतरा रहा हो लेकिन इतना जरूर है कि चुनाव लड़ने के इच्छुक आवाज तो उठा रहे हैं लेकिन यह भी भांपने की कोशिश कर रहे हैं कि चुनाव के समय हरीश और प्रीतम में किसका पलड़ा भारी होगा। इसके बाद ही उस नेता की पैरवी करेंगे।