चुनाव में चेहरा दिखाती कम, छिपाती ज्यादा है कांग्रेस

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हरीश रावत
साल भर बाद 2022 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस का चेहरा कौन होगा, इस पर बहस छिड़ गई है। बहस के केंद्र में कांग्रेस के राष्ट्रीय महासचिव हरीश रावत हैं, जो चाहते हैं कि हैं कि पार्टी अपने सीएम कैंडिडेट का चेहरा अभी से जाहिर कर दे। ताकि कोई उलझन न रहे और पूरी पार्टी उसकी अगुवाई में एकजुट होकर चुनाव फतह कर ले। रावत की इस राय पर पार्टी के भीतर अलग-अलग राय उभरकर सामने आ रही है। इस बहस की रोशनी में यह दिलचस्प तथ्य भी कांग्रेस के साथ जुड़ा रहा है कि चुनाव के दौरान चेहरा दिखाने से ज्यादा उसे छिपाए रखने पर पार्टी ने ज्यादा भरोसा किया है।
-2022 के चुनाव में सीएम कैंडिडेट पर कांग्रेस में छिड़ी है बहस
-कांग्रेस के राष्ट्रीय महासचिव हरीश रावत हैं बहस के केंद्र में
सिर्फ 2017 के विधानसभा चुनाव के बारे में कहा जा सकता है, जबकि कांग्रेस का चुनाव में चेहरा एकदम साफ था। तत्कालीन सीएम हरीश रावत की अगुवाई में ही यह पूरा चुनाव कांग्रेस ने लड़ा, हालांकि पार्टी को बुरी तरह शिकस्त भी खानी पड़ी थी। इसी चुनाव में उसका सबसे कम 11 सीटों का स्कोर भी सामने आया था। सीएम कैंडिडेट घोषित करने के संबंध में यह चुनाव एक खास वजह से सबसे अलग रहा था। चुनाव से पहले 2016 में सियासी संग्राम और कांग्रेस में बगावत के बाद जिस तरह से भाजपा से कांग्रेस की आरपार की लड़ाई छिड़ गई थी, उसमेें हरीश रावत ने ही पूरी कांग्रेस का नेतृत्व किया था। कांग्रेस हाईकमान ने पूरी लड़ाई हरीश रावत के जिम्मे छोड़ दी थी। चुनाव में भले ही कांग्रेस हारी, लेकिन उससे पहले बर्खास्त हुई सरकार की जिस तरह से हरीश रावत ने बहाली कराई, उसमें स्वाभाविक तौर पर 2017 का चुनाव उनके नेतृत्व में ही लड़ा जाना था।
2017 के इस चुनाव से इतर राज्य बनने के बाद हुए सभी चुनाव में कांग्रेस चेहरे के मामले में खुलकर सामने नहीं आई। सबसे पहले, राज्य के पहले चुनाव की बात करें। 2002 में जब चुनाव हुए, तब हरीश रावत कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष थे, लेकिन पार्टी किसी एक नेता को आगे करते हुए चुनाव में जाती नहीं दिखी। यही वजह थी कि संगठन के लिए खासी मेहनत करने वाले रावत सत्ता में आने पर सीएम नहीं बन पाए और दिल्ली से एनडी तिवारी को देहरादून भेजकर हाईकमान ने उनकी ताजपोशी करा दी। इसके बाद 2007 और 2012 के चुनाव हुए, जिसमें कांग्रेस को एक चुनाव में हार और दूसरे में जीत मिली, लेकिन सीएम कैंडिडेट किसी में भी घोषित नहीं किया गया। कांग्रेस इन चुनावों में अपने क्षत्रपों हरीश रावत, विजय बहुगुणा, सतपाल महाराज, डॉ इंदिरा ह्रदयेश, हरक सिंह रावत की खींचतान से ही सहमी रही।
सीएम कैंडिडेट पर कांग्रेस की उलझन को इस रूप में समझा जा सकता है कि जब 2012 में पार्टी सरकार में आई, तो अप्रत्याशित तौर पर विजय बहुगुणा सीएम बन गए। हालांकि 2013 की आपदा के बाद पार्टी ने उन्हें हटाकर हरीश रावत को सीएम की गद्दी पर बैठा दिया। अब हरीश रावत ने जिस वक्त चेहरा घोषित करने की राय सामने रखी है, उस वक्त भी कांग्रेस के हालात कुछ बदले नहीं हैं। कांग्रेस में हरीश रावत की अगुवाई में एक मजबूत धड़ा मौजूद है तो दूसरी ओर प्रदेश अध्यक्ष प्रीतम सिंह और नेता प्रतिपक्ष डॉ इंदिरा की जुगलबंदी है। दोनों धड़ों की एक दूसरे को हाशिये पर धकेलने की कोशिश है। ऐसे में हाईकमान पर चेहरा घोषित करने की मांग का कितना प्रभाव पड़ता है, ये देखने वाली बात है। वैसे, कांग्रेस के प्रदेश उपाध्यक्ष सूर्यकांत धस्माना का कहना है कि पार्टी का ध्यान वर्तमान में संगठन की मजबूती का है। चुनाव किस तरह से लड़ा जाना है, यह हाईकमान तय करेगा।