कांग्रेसः संतुलन की कोशिश से बढ़ा असंतुलन?

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विधानसभा चुनाव से पहले कांग्रेस हाईकमान ने रेवड़ियों की तरह जिम्मेदारी बांटकर संतुलन साधना चाहा है। हर वर्ग और गुट के लोगों को एडजस्ट करने की कोशिश की गई है। लिहाजा, कहीं पर कोई, तो कहीं पर कोई गुट हावी होता दिखाई दे रहा है। ऊपरी तौर पर बाजी हरीश रावत गुट के हाथों में जाती दिख रही है, लेकिन अंदरखाने जो स्थिति है, उसमें यह गुट भी पूरी तरह से संतुष्ट नहीं है। हाईकमान ने हरीश रावत गुट के ज्यादातर लोगों के हाथों में दायित्व देकर कुछ ऐसी जिम्मेदारी दूसरे लोगों को बांट दी है, जिनसे हरीश रावत का छत्तीस का आंकड़ा माना जाता है। ऐसे में यह संतुलन कांग्रेस के लिए आने वाले दिनों में घातक न साबित हो जाए, इस पर भी बहस शुरू हो गई है।

कांग्रेस की राजनीति के धुरंधर हरीश रावत के पक्ष में सबसे बड़ी बात यही मानी जा रही है कि वह अपनी पसंद का अध्यक्ष बनवाने में कामयाब रहे हैं। किसी जमाने में गणेश गोदियाल को सतपाल महाराज का राजनीतिक शिष्य माना जाता था, लेकिन हरीश रावत के मुख्यमंत्री काल में वह उनके ज्यादा करीब हो गए। और तो और 2016 में जब सत्ता संग्राम चला, तब राजेंद्र भंडारी के साथ संयुक्त प्रेस कॉन्फ्रेंस करके गणेश गोदियाल ने ही खरीद-फरोख्त के प्रयासों की बात करते हुए तहलका मचा दिया था। उन्होंने भाजपा पर आरोप लगाया था कि वह उन्हें पार्टी में शामिल होने के लिए पांच करोड़ रुपये का ऑफर दिया गया है।

बहरहाल पूरे सत्ता संग्राम के दौरान गणेश गोदियाल ने चट्टान की तरह खड़ा होकर हरीश रावत का साथ दिया था। नेता प्रतिपक्ष इंदिरा ह्रदयेशश की मौत के बाद पार्टी में जो समीकरण बदले, उसमें अब गणेश गोदियाल अध्यक्ष बन गए हैं। हरीश रावत के कृपापात्र होने की वजह से उन्हें यह कुर्सी नसीब हुई है।

कांग्रेस के केंद्रीय महासचिव और पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत अब उत्तराखंड कांग्रेस की चुनाव प्रचार अभियान समिति के अध्यक्ष भी हैं। यानी कांग्रेस का चुनाव अभियान अब जैसा वह चलाएंगे, वैसे चलेगा। इन सब के बीच प्रीतम सिंह अब नेता प्रतिपक्ष हो गए हैं। चूंकि विधानसभा चुनाव से पहले सिर्फ एक सत्र की ही गुंजाइश बची है, इसलिए अचानक से नेता प्रतिपक्ष का पद उस लिहाज से थोड़ा कम महत्वपूर्ण हो गया है। यही वजह है कि प्रीतम सिंह यह पद नहीं लेना चाह रहे थे। विधानसभा का कार्यकाल यदि पांच साल बचा होता, तो इसी पद के लिए सिर फुटव्वल चरम पर होती।

अध्यक्ष हरीश रावत गुट का बना है, तो चार-चार कार्यकारी अध्यक्षों में ज्यादातर प्रीतम सिंह के करीबी दिख रहे हैं। सबसे बड़ी बात हरीश रावत को जिस रणजीत सिंह रावत के नाम पर सबसे बड़ा एतराज है, वह प्रीतम सिंह के समर्थन से अब पार्टी के कार्यकारी अध्यक्ष बन गए हैं। उनकी नियुक्ति हरीश रावत गुट के रंग में भंग डालने का काम कर रही है। फजीहत कांग्रेस की इस बात के लिए भी हो रही है कि आखिर उत्तराखंड जैसे छोटे राज्य में क्यों उसने चार-चार कार्यकारी अध्यक्ष बना दिए हैं। आज से पहले यूकेडी जैसा दल ही इस तरह की नियुक्ति करता रहा है। हालांकि उसने भी कभी एक साथ चार नेताओं को कार्यकारी अध्यक्ष नहीं बनाया है।

आज की तारीख में जिस तरह से जिम्मेदारियों का वितरण किया गया है, उस लिहाज से पार्टी के अलग-अलग गुटों को खुश होने के कारण तलाशने पड़ रहे हैं। हर एक के साथ कुछ न कुछ किंतु-परंतु चस्पा कर दिया गया है। ऐसे में आने वाले दिनों में संतुलन की जगह वर्चस्व की जंग और तेज होने की आशंका जताई जा रही है। इंदिरा ह्रदयेश की मौत के बाद कांग्रेस के भीतर प्रीतम सिंह गुट कमजोर हुआ है। इसके बावजूद यह गुट पूरी ताकत से हरीश रावत गुट को चुनौती देने की तैयारी कर रहा है। विधानसभा चुनाव के दौरान टिकट वितरण की जब बारी आएगी, तो निश्चित तौर पर अलग तरह की गुटबाजी के दर्शन होंगे। संतुलन की तमाम कवायद के बीच महिलाओं को नेतृत्व में समुचित भागीदारी न मिल पाने का सवाल भी उठा रहा है। खासतौर पर चार-चार कार्यकारी अध्यक्षों में से एक भी महिला न होने पर सोशल मीडिया पर भड़ास निकाली जानी शुरू हो गई है।