“कला किसी की मोहताज़ नहीं होती” इस कहावत को अपने हुनर से सही साबित किया है रामावतार ने। अपनी कलात्मक सोच को अमली जामा पहनाने के लिये रामावतार को लाखों रुपये की जरुरत नहीं पड़ी बल्कि एक पतली तार, कुछ रंगीन बीज और हाथों की कला ने कुछ ऐसा कर दिखाया जिस पर यकीन करना थोड़ा मुश्किल है।
शुरुआत में रामावतार बागवानी के लिए बीज इकट्ठा करते थे और उदयपुर में शहर के निवासियों को बरामदे और छतों पर छोटे बगीचे बनाने में मदद करते थे। जल्द ही रामावतार ने, महसूस किया कि, उन सारे बीजों में से कुछ कितने सुंदर थे। अलग-अलग रंग औऱ आकार के इन बीजों ने रामवतार के अंदर के कलाकार को जगाया। वो बताते हैं कि “इन बीजों को देखकर मैं सोचने लगा कि हम उनके साथ और क्या कर सकते हैं और तब इन बीजों को इस्तेमाल करने के लिए खुद को प्रेरित महसूस किया,और मेरी यह सोच बीज ज्वैलरी बनाने के साथ खत्म हुई।”
जल्द ही प्रकृति का यह प्यार रामावतार को उत्तराखंड के जिमकॉर्बेट नेशनल पार्क ले गया, जहां उन्होंने बर्डवॉचिंग करना शुरू कर दिया। और ज़ेवर बनाने के अपने जुनून से और अधिक जुड़ने के लिए प्रकृति के बीचों-बीच अपना घर बना लिया।
रामावतार कहते हैं कि, “अपनी ज्वैलरी बनाने के लिए मैं हमेशा प्रकृतिक चीजों की तलाश करता हूं, अपने अनुभव से मैंने अब टिकाउ और एकदम अलग तरह के डिजाईन तैयार किए हैं। कुछ अलग-अलग प्रकार के बीज जैसे कि रीठा के बीज, लाल चंदन के पेड़, इंडियन स्क्रू के पेड़,बाघ के पंजे,पंख,समंद्री सींप और नारियल के छिलके आदि की मदद से मैं ज्वैलरी तैयार करता हूं।इन सब चीजों को कॉपर और ब्रास की पतले तार के साथ मिलाकर बहुत ही खूबसूरत इको-फ्रेंडली और ऑर्गेनिक ज्वैलरी तैयार होती है।”
2005 से रामावतार अपने हाथों के जादू से लोगों का मन मोह रहे हैं और प्राकृतिक ज्वैलरी तैयार कर रहे हैं। पेड़ों को लगाने के इस्तेमाल में आने वाले बीजों से रामावतार एक से एक खूबसूरत ज्वेलरी तैयार करते हैं और लोग उसे खुब पसंद भी करते हैं। अजमेर राजस्थान से संबंध रखने वाले रामावतार किसान के परिवार से हैं। आज वह एक प्रकृतिप्रेमी है और हर रोज नए तरह के बीजों को ढ़ूंढ़ कर उसके जरिए कुछ नया करने की चाह रखते हैं। इन बीजों के माध्यम से वह अपने हाथ से बनाए हुई नायाब चीजें लोगों के बीच लाते हैं।
स्कूल वॉकआउट होने के बावजूद बेयरफुट कॉलेज के स्कूलों में जोकि राजस्थान के 5 जि़लों में संचालित होते है उन अनौपचारिक स्कूलों का समन्वयन किया और उनके शिक्षकों के साथ काम किया।” 2003 में रामावतार उदयपुर चले गए और शिक्षांतर ज्वाईन कर लिया जहां उन्होंने छः साल काम किया।
अपने इस ज्ञान को सबके साथ साझा करने में रामवतार का खासा विश्वास है, इसलिए वह देश भर में कार्यशालाएं आयोजित कर रहे हैं, जिससे उनके विद्यार्थी देखे सकें की प्रकृति उनको क्या दे रही हैं और उसकी मदद से वह कुछ नया सीख सकते हैं।