मानसून के साथ बढ़ा डेंगू का खतरा, विभाग अलर्ट

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Dengue
Dengue spreading wings in Dehradun

देहरादून। मानसून के आने के साथ ही डेंगू का खतरा भी राज्य पर मंडराने लगा है। बारिश के कारण जगह-जगह हुआ जलभराव बीमारी को न्यौता दे रहा है। डेंगू का डंक भी इस कारण मजबूत होने लगा है। बीते साल डेंगू के प्रकोप को देखते हुए विभाग इस साल पहले ही कमर कसने लगा है।
राजधानी में सबसे ज्यादा खतरा
बीते साल पर गौर करें तो डेंगू का डंक सबसे ज्यादा देहरादून में प्रभावी रहा। साल 2016 में देहरादून में 1434 मरीजों में डेंगू की पुष्टि हुई। यहां तक की तीन लोगों को अपनी जान तक गंवानी पड़ी। जिसके बाद एक ओर जहां स्वास्थ्य महकमे के हाथ पांव फूले वहीं, मुख्यमंत्री व स्वास्थ्य मंत्री को भी मैदान में उतरना पड़ा था। बीते साल की बात करें तो मॉनसून की विदाई के बाद सितंबर तक ही राज्य में डेंगू के मरीजों की संख्या तकरीबन 200 पहुंच गई थी। ऐसे में स्वास्थ्य विभाग को मॉनसून शुरू होने के साथ ही डेंगू अटैक का डर सताने लगा है। स्वास्थ्य विभाग को डर है कि इस बार भी कहीं इसी प्रकार से डेंगू का डंक शहर में परेशानी खड़ी न कर दे।
किया जा रहा इंटेंसिव सोर्स डिटेक्शन सर्वे
बीते सालों से सबक लेते हुए स्वास्थ्य विभाग ने इस साल इंटेंसिव सोर्स डिटेक्शन सर्वे कराने का फैसला किया है। जिसके तहत संभावित क्षेत्रों पर डेंगू के अटैक से पहले ही वहां छिड़काव आदि कराया जा सके। सर्वे का कार्य शुरू किया जा चुका है। दून में 200 से अधिक आशाएं संभावित स्थानों पर जाकर लिस्ट तैयार करेंगी। इसके बाद नगर निगम वहां पर छिड़काव करेगा।
एक बार में 200 अंडे देता है डेंगू मच्छर
स्वास्थ्य विभाग के ​विशेषज्ञों की मानें तो डेंगू का मच्छर एक बार में दो सौ से अधिक अंडे देता है। वहीं अंडे से लार्वा पैदा होने का चक्र काफी समय तक चलता है। ऐसे में एक बार छिड़काव करने से असर नहीं होता है। इसलिए जो स्थान चिह्नित होंगे, वहां पर कई बार छिड़काव किया जाएगा। जुलाई से लेकर नवंबर तक पानी के ठहराव को देखते हुए डेंगू के प्रकोप की संभावनाएं अधिक रहती हैं। ऐसे में आशा कार्यकर्ताओं की मदद से दवाई घर-घर पहुंचाई जाएगी। जहां पानी के ठहराव की संभावनाएं रहेंगी, वहां दवा डालकर डेंगू के लार्वा व प्यूपा को पनपने से पहले ही खत्म कर दिया जाएगा। वीबीडी अधिकारी सुभाष जोशी का कहना है कि डेंगू को लेकर विभाग सतर्क है। आशाओं के साथ मिलकर डेंगू के पनपने के स्थानों का सर्वे कराया जा रहा है। इसके अलावा दवा, प्लेटलेट्स आदि की उपलब्धता को लेकर भी कार्ययोजना तैयार की गई है।

कैंट इलाकों के लिए बोर्ड ने कसी कमर
डेंगू और मलेरिया से बचाव को लेकर कैंट बोर्ड भी मुस्तैद दिख रहा है। क्षेत्र में फॉगिंग और दवा छिड़काव के लिए सभी वार्डों के लिए एक-एक कर्मचारी देना का प्रस्ताव बीती बोर्ड बैठक में सहमति बनाई जा चुकी है। जो वार्ड बड़े हैं वहां एक-एक कर्मचारी और प्रदान किए जाने की रणनीति बोर्ड ने बनाई है।
घरों की टंकी में सबसे ज्यादा पैदा होते हैं
दिल्ली स्वास्थ्य मंत्रालय की एक समीक्षा रिपोर्ट में खुलासा किया गया है कि 41 फीसदी मच्छर प्लास्टिक के ड्रम और कंटेनर में पैदा होते हैं, जिनका इस्तेमाल मुख्य रूप से घरों और दुकानों में पानी जमा करने के लिए किया जाता है। इसके अलावा कूलरों से 12 फीसदी और निर्माण स्थलों पर मुख्य रूप से इस्तेमाल होने वाले लोहे के कंटेनर में 17 फीसदी मच्छर पैदा होते हैं।
डेंगू से जुड़े कुछ अन्य तथ्य
– डेंगू मच्छर एक बार में करीब 200 अंडे देता है।
– डेंगू मच्छर का जीवन लगभग 2 हफ्तों का होता है।
– डेंगू संक्रामक नहीं होता है। ये एक व्यक्ति से दूसरे में नहीं फैलता है।
– डेंगू चार प्रकार का होता है। एक बार में केवल एक ही तरह का डेंगू होता है।
– दूसरी बार डेंगू होने का मतलब दूसरी प्रकार का डेंगू होता है।
– ज्यादातर डेंगू मामलों में प्लेटलेट्स चढ़ाने की जरूरत नहीं होती।
– मरीज का प्लेटलेट्स काउंट 10 हजार से कम होने लगें तो स्थिति जानलेवा हो सकती है।
– डेंगू के मच्छर के काटने की सबसे पसंदीदा जगह, कोहनी के नीचे या घुटने होते हैं।
– 15 से 16 डिग्री से कम तापमान में ये मच्छर पैदा नहीं हो पाते।
– जुलाई से अक्टूबर तक डेंगू बीमारी चरम पर होती है।