उत्तराखंड की यातायात व्यवस्था को सुचारू बनाना मेरी प्राथमिकता: केवल खुराना

0
1856

देहरादून। चुनौतियों से निपटना और उन्हें सही ढंग से संचालित करना एक पुलिस अधिकारी के रूप में मेरी नैतिक जिम्मेदारी है। मैंने यही कार्य किया है और जब तक सेवा में हूं जनहित में इस तरह के प्रयोगों में कोई कोताही नहीं बरतूंगा। यह मानना है उत्तराखंड के यातायात निदेशक केवल खुराना का। एक आईपीएस के रूप में कीर्तिमान पर कीर्तिमान बनाने वाले अधिकारियों के रूप में ख्याति प्राप्त केवल खुराना जहां भी रहे हैं, वहीं उन्होंने अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाया है।
यातायात निदेशक के रूप में खुराना की अपनी कुछ प्राथमिकताएं हैं। उनका कहना है कि वह उत्तराखंड की राजधानी देहरादून को अतिक्रमण मुक्त करना चाहते हैं। साथ ही साथ पहाड़ों की रानी मसूरी, राजधानी देहरादून की यातायात व्यवस्था सुधारने के साथ-साथ वाहनों की पार्किंग की व्यवस्था दूर करेंगे। उनका कहना है कि वह मार्ग बदलने या डायवर्जन को गूगल पर डालेंगे ताकि आम आदमी यातायात की इस नई व्यवस्था का लाभ उठाएं। इसके लिए पूरे राज्य में पौने दो हजार बोर्ड लगाए जाएंगे। श्री खुराना की कार्यशैली का इससे ही उदाहरण लिया जा सकता है कि उन्होंने कई चौराहों पर स्वचालित चालान की व्यवस्था लागू कर दी है। आम आदमी को पता ही नहीं चलेगा कि उसने चौराहा लांघने की गलती की अथवा यातायात नियमों को तोड़ा, उसका स्वत: चालान होगा। इसी प्रकार महिलाओं के लिए विशेष व्यवस्था बनाई जा रही है।
चारधाम यात्रा के संदर्भ में यातायात निदेशक केवल खुराना मानते हैं कि हरिद्वार, ऋषिकेश में होने वाले जाम के संदर्भ में उनकी कल्पना पूरी है, इसके लिए नेपाली फार्म पर विशेष जोर दिया जाएगा। खुराना ने अपने मिशन को पूरा करने के लिए बच्चों, छात्र-छात्राओं, अभिभावकों तथा आम आदमी को जागरूक करने का निर्णय लिया है, जिसके तहत तमाम विद्यालयों को शामिल किया गया है। जिनके बच्चे पुलिसकर्मियों के साथ कम से कम मिलाकर यातायात व्यवस्था संचालित करने का अभिनव प्रयोग कर रहे हैं, इसके लिए एक नहीं लगभग आधा दर्जन योजनाएं संचालित हो रही है। इन्हीं योजनाओं में सुखद यात्रा भी शामिल है। श्री खुराना ने पिछले दिनों रविवार को महिलाओं के लिए निशुल्क यातायात व्यवस्था की। इसका लाभ महिलाओं को मिला। सुखद नामक इस योजना के तहत 2240 महिलाओं ने जनवरी में यात्रा की थी। जिनमें से लगभग एक हजार महिलाओं ने इस यात्रा को काफी सराहनीय बताया था। इसी तरह की अन्य कई योजनाएं संचालित हो रही है।
इसी प्रकार की योजनाओं में जूनियर ट्रैफिक फोर्स भी शामिल है, जिसके तहत उत्तराखंड के स्कूलों के 15 बच्चे चुने जाते हैं, जिन्हें यातायात का प्रशिक्षण दिया जाता है, नियम कानून बताए जाते हैं। यही बच्चे छात्र-छात्राओं के साथ-साथ आम नागरिकों को भी यातायात के नियमों की जानकारी देते हैं। खुराना बताते हैं कि माताओं की भी यातायात फोर्स बनाई जा रही है, इसके लिए माताओं को भी प्रशिक्षित किया जा रहा है। इनमें प्राय: वही माताएं है, जिनके बच्चे विभिन्न स्कूलों के शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं। इन महिलाओं को भी चयनित और प्रशिक्षित कर यातायात नियमों की जानकारी दी जा रही है, जो विभाग के लिए महत्वपूर्ण साबित होगी। यातायात निदेशक श्री खुराना ने ‘मैं हूं देहरादून’ नाम योजना संचालित की है जिसमें शहर की सड़कों की यात्रा मानचित्र तथा व्यवस्था के बारे में बच्चों को परिचित कराया जाता है, बाद में यही बच्चे यातायात नियमों के परिपालन में महत्वपूर्ण भागीदारी निभाते हैं। इस योजना में कक्षा 12 तक के बच्चों को शामिल किया गया है जो भविष्य के नागरिक हैं। इसी क्रम में आवाज परियोजना को भी शामिल किया गया है जिसमें सिटी बसों में महिलाओं के लिए विशेष व्यवस्था कराई जा रही है और लोगों को जागरू किया जा रहा है कि वे जनता की सुविधा का किस तरह इस्तेमाल करें। जन सामान्य के लिए उपलब्ध वाहनों को किस तरह से अच्छे ढंग से संचालित किया जाए, यह प्रशिक्षण का मुख्य विषय है।
खुराना द्वारा ‘सम्मान’ परियोजना संचालित की जा रही है जो निशुल्क रूप से लोगों को घर तक छोड़ने की सुविधा है, यह सुविधा वरिष्ठ नागरिकों तथा दिव्यांगजनों के लिए विशेष रूप से संचालित की जा रही है ताकि बुजुर्गों और दिव्यांगों को समस्या न होने दी जाए। इसी कड़ी में ‘जवाब’ परियोजना भी है। जिसमें बालिकाओं को आने वाले खतरे से बचने को तैयार किया जाता है और आत्मरक्षा के गुर सिखाए जाते हैं। इसके लिए विभाग छोटी फिल्मों के माध्यम से तथा जूडो-कराटे के माध्यम से लोगों को जागरूक किया जा रहा है। निरोग परियोजना, महिलाओं के लिए निशुल्क परियोजना, सिटी पेट्रोल यूनिट आदि व्यवस्थाओं के माध्यम से यातायात निदेशक उत्तराखंड की व्यवस्था को चाक-चौबंद बनाने का प्रयास कर रहे हैं, जो अपने में विशिष्ट आयोजनो में शामिल किए जा सकते हैं।