उम्र छुपाते ये उत्तराखंडी नेता

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यदि आप सरकारी नौकरी के लिए आवेदन करते है तो आप के लिए आवेदन पत्र में  जन्म तिथि का विवरण जरुरी हैं लेकिन चुनाव लड़ने के लिए नेताओं के लिए यह जरुरी नहीं हैं। और हो भी क्योँ क्योंकि प्रदेश का भविष्य इन्हीं नेताओं के हाथों में सुरक्षित हैं। बात करते हैं चुनाव आयोग द्वारा लिए जाने वाले शपथ पत्रो की।

उत्तराखंड, के नामांकनों की अगर बात करें तो पिछले पांच सालों में कई नेताओं की तो उम्र महज तीन या चार साल ही बढ़ी है। जबकि वे पांच साल तक विधायक रह चुके हैं। एक नज़र उन नेताओं पर जिन्हें अपनी उम्र ही नहीं पता हैं या फिर वे पांच सालों में शपथ पत्र के हिसाब से महज तीन ही साल की उम्र बढ़ाने में सफल हुए हैं। 

पुरोला विधान सभा सीट से बीजेपी प्रत्याशी मालचंद तो शपथ पत्र में अपनी उम्र का जिक्र करना ही भूल गए। वहीँ रामनगर से कांग्रेस के प्रत्याशी रणजीत रावत ने इस बार अपनीं उम्र 57 दर्ज की हैं जबकि उनकी उम्र 2012 चुनाव में 51 थी यानि विगत पांच साल में उनकी उम्र में शपथ पत्र के हिसाब से एक बर्ष और बढ़ गई।

वही कांग्रेस से पाला बदलकर बीजेपी ज्वाइन करने वाले यशपाल आर्य की उम्र जो 2102 मैं 60 साल थी अचानक पार्टी बदलते ही 67 हो गई है।

जागेश्वर सीट से कांग्रेस प्रत्याशी एवं विधान सभा अध्यक्ष गोविन्द सिंह कुंजवाल की आयु में भी महज चार वर्षों का ही इजाफा हुवा हैं। कुंजवाल की उम्र 2012 में 67 साल थी।

पिछली बार कांग्रेस के टिकट पर द्वाराहाट सीट से चुनाव जीतने वाले मदन सिंह बिष्ट ने 2012 में अपनी उम्र 51 साल दर्शायी थी। लेकिन पांच साल में उम्र केवल तीन साल ही बढ़ी है। इस बार उन्होंने अपनी उम्र 54 साल बताई है। अल्मोड़ा से 2012 में कांग्रेस के टिकट पर चुनाव जीतकर विधानसभा पहुंचे मनोज तिवारी पांच साल पहले 42 साल के थे। अब वह 45 साल के हैं।

पिथौरागढ़ से 2012 में कांग्रेस के टिकट पर चुनाव जीते मयूख महर तब 56 साल के थे। इस बार के शपथ पत्र में उन्होंने अपनी उम्र 59 साल बताई है। यानि पांच साल विधायक रहने के बाद उम्र में कुल इजाफा तीन साल। बीएचइएल रानीपुर से भाजपा के टिकट पर जीतने वाले आदेश चौहान ने पिछली बार अपनी उम्र 38 वर्ष दिखाई थी। इस बार वे अपनी उम्र ही भूल गए।

बहरहाल नेता तो अपना उम्र के बारे में सही जानकारी देने में चूक गये लेकिन दखना ये है कि चुनाव आयोग कितनी गंभीरता से इस चूक को लेता है।