वन अधिकारियों ने उत्तराखंड के जंगलों में जानवरों के मूवमेंट पर नज़र रखने के लिये अब ड्रोन कैमरों की मदद लेने का फैसला किया है। इसके लिये खासतौर पर उधमसिंह नगर जिले के टांडा बेल्ट में ड्रोन कैमरों का इस्तेमाल करने का निर्णय लिया गया है।
एक ड्रोन एक मानव रहित विमान या एक उड़ान रोबोट है, जो दूर से नियंत्रित किया जा सकता है या सॉफ्टवेयर-नियंत्रित उड़ान योजनाओं के माध्यम से स्वायत्तता से उड़ सकता है।
इस प्रयोग के लिये दो रेलवे पटरियों – लालकुआन से काशीपुर और लालपुर तक रुद्रपुर जो टांडा जंगलों से होकर गुजरती हैं चुना गया है।इन दोनों ही रास्तों पर हाथियों का कॉरिडोर है, हाथी वाले झुंड अक्सर पानी और चारे की तलाश में पटरियों के करीब आते हैं, जिससे दुर्घटनाएं होती हैं। पिछले साल अप्रैल में, टांडा वन विभाग में एक ट्रेन द्वारा टक्कर लगने से दो हाथियों की मौत हो गई थी।
वन संरक्षक पराग मधुकर ढकते बताते हैं कि”यह पहली बार है कि उत्तराखंड में घातक घटनाओं से बचने के लिए ड्रोन प्रौद्योगिकी के जरिए हाथियों की आवाजाही पर नजर रखी जाएगी। वन अधिकारियों को ड्रोन से निपटने के लिए प्रशिक्षण दिया जा रहा है।
पायलट प्रोजेक्ट में पांच ड्रोन का इस्तेमाल किया जाएगा, इसमे पहले चरण में, लॉकुआ और रुद्रपुर रेलवे पटरियों पर ड्रोन का इस्तेमाल किया जाएगा। एक ड्रोन 2000 मीटर की ऊंचाई पर उड़ सकता है और 9 किलोमीटर के एक खंड को कवर कर सकता है।
दिन के दौरान ट्रेन के निर्धारित समय से 30 मिनट पहले ड्रोन की उड़ान भरी जाएगी, यदि पटरियों के पास एक हाथी या झुंड देखते हैं, तो वन अधिकारी संबंधित रेलवे स्टेशन मास्टर को सूचित करेंगे, जो ट्रेन के ड्राइवर को उस क्षेत्र में ट्रेन की गति को कम करने के लिए निर्देशित करेगा।
भारत में एशियाई हाथियों की सबसे बड़ी जंगली आबादी है। जानकारों का भी मानना है कि ड्रोन की मदद से रेल हादसों में मारे जाने वाले हाथियों और अन्य जानवरों का संख्या पर काबू पाया जा सकता है।