अब ढोल बजाकर तोड़ेगें ”वर्ल्ड रिकाॅर्ड”

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उत्तराखंड के वाद्य यंत्रों में जहां बांसुरी, नफीरी, खंजड़ी जैसे वाद्ययंत्र आम प्रचलन में हैं। वहीं ढोल दमाऊ पर्वतीय सांस्कृति की विरासत के रूप में जाने जाते हैं। इनके बिना कोई शुभ काम जीवन में पूरे नहीं होते। त्योहार तो उनके बिना त्योहार तो अधूरे रहते हैं। ढोल और दमाऊ दोनों हर्ष, उल्लास और खुशी के प्रतीक हैं।

ढ़ोल की इस महत्ता को बनाए रखने के लिए संस्कृति विभाग ने एक अनोखी पहल करने का सोचा है।आपको बतादे कि ढ़ोल उत्तराखंड का राजकीय वाद्य यंत्र है।इस पहल में कोशिश यह है कि एक साथ 1500 ढ़ोलवादक एक साथ ढ़ोल बजाए और एक नया कीर्तिमान स्थापित करें।

आने वाले 6 से 10 अगस्त तक संस्कृति विभाग ऊं नमों नाद वर्कशाॅप का आयोजन करने वाला है।यह वर्कशाप हरिद्वार के प्रेमनगर आश्रम में आयोजित की जाएगी।वर्कशाॅप के आखिरी दिन यानिकी 10 अगस्त को उत्तराखंड के लाखों ढ़ोलवादक एक साथ अपनी कला का प्रदर्शन करेंगे।इस एक साथ प्रस्तुति देने के माध्यम से सभी ढ़ोल वादक एक नया रिकार्ड बनाने की पूरी कोशिश करेंगे।

हालांकि अब तक इस वर्कशाॅप के लिए एक हजार ढोल वादक रजिस्ट्रेशन करा चुके हैं।शुक्रवार यानि कल तक रजिस्ट्रेशन खुला है जिसमें उम्मीद की जा रही है किपहले की तरह और भी ढ़ोल वादक अपना रजिस्ट्रेशन कराऐंगे।लोकगायक प्रीतम भरतवाण और ढोलवादक ओंकारदास इस पूरे वर्कशॅाप का नेतृत्व कर रहे हैं।प्रीतम और ओंकरदास के संरक्षण में इस वर्कशॅाप की तैयारियां जोरों पर हैं।

आपको बता दें कि वर्कशाॅप में ढोलवादकों को ढोल पर बजाई जाने वाली नौबत, शबद, धुंयाल, चौरात, सुल्तानी ताल, पंडौ नृत्य, देवी-देवता का आह्वान, गढ़वाल-कुमाऊं और जौनसार के वादकों की विशिष्ट शैली के बारे में बताया जाएगा। किसी एक ताल के लिए विशेष प्रशिक्षण देकर बकायदा कोरियोग्राफी की जाएगी।इसके साथ ही सभी ढोल वादकों के लिए एक जैसी ड्रेस बनाई गई हैं।ढ़ोल वादकों के आने जाने की व्यवस्था से लेकर उनके खाने पीने की सारी सुविधाएं संस्कृति विभाग करेगा और लोकवादकों को हर दिन का मानदेय 500 रुपये और सर्टिफिकेट भी दिया जाएगा।

कार्यशाला के बाद लोकवादकों के बीच से ही 15 गुरु चयनित किए जाएंगे। ये गुरु अन्य वादकों को ढोलसागर विद्या की जानकारी देंगे। प्रेमनगर आश्रम के जिस गोवर्द्धन हाल में प्रस्तुति होगी, उसमें 15 हजार दर्शक इस प्रस्तुति को देख सकेंगे। पूरी कार्यशाला का दस्तावेजीकरण भी होगा।

संस्कृति विभाग निदेशक बीना भट्ट ने बताया कि महाराष्ट्र के कोल्हापुर में 1356 ढोल एक साथ बजाने का रिकार्ड गिनीज बुक में दर्ज है। यह रिकार्ड तोड़ने के लिए हमें 1500 ढोल वादक चाहिएं। हम इसके लिए प्रयास कर रहे हैं।जागर लोकगायक प्रीतम भरतवाण ने बताया कि ढोल वादक ही हमारे असली लोक कलाकार हैं। उनके संरक्षण के लिए ऐसे आयोजन जरूरी हैं। लोक कलाकारों की खोज हो रही है तो पता चल रहा है वो किस हाल में हैं।