कोरोना की वैश्विक महामारी के दृष्टिगत देशभर में लागू लॉक डाउन में प्रकृति अपने मूल स्वरूप में लौट रही है। इन दिनों ग्लोबलाइजेशन के साथ बेतहाशा बढ़ी आवश्यकताओं का आदी हो चुका इंसान बेहद सीमित संसाधनों में जीने की अपनी पुरानी आदतों में लौट रहा है। प्रकृति भी मानवीय हस्तक्षेप घटने से अपने को आत्म शुद्धि कर रही है। प्रकृति का स्वर्ग कही जाने वाली सरोवरनगरी नैनीताल की विश्व प्रसिद्ध नैनी झील भी इसकी बानगी है।
झील नियंत्रण कक्ष के अनुसार नैनी झील का जलस्तर अंग्रेजों के तय पैमाने पर सोमवार को 6 फीट पांच इंच रिकार्ड किया गया। इससे पूर्व केवल वर्ष 2005 में आज के दिन झील का जलस्तर 6 फीट 6 इंच यानी अब से बेहतर था। यानी नैनी झील जलस्तर के मामले में पिछले 15 वर्षों के सर्वश्रेष्ठ स्तर पर है। यह भी उल्लेखनीय है कि पहले लॉक डाउन यानी जनता कर्फ्यू के रोज 22 मार्च को झील के जलस्तर में मात्र 7 इंच की कमी आई है। यानी करीब तीन दिन में झील का पानी एक इंच गिर रहा है, जबकि पिछले वर्षों में इन दिनों आधा इंच जलस्तर रोज गिरता था। यह भी खास बात है कि नैनी झील के पानी का ही नैनीताल में पेयजल सहित सभी तरह के कामों में उपयोग होता है। यानी नगर में जल के उपयोग एवं वाष्पीकरण तथा जल के क्षरण आदि कारणों में पिछले एक माह में कमी आई है।
एक दौर में नैनी झील के दो तिहाई हिस्से में ऑक्सीजन की मात्रा शून्य हो गई थी। यानी झील के दो तिहाई हिस्से में जल जीवन मृत हो गया था। इसके बाद वर्ष 2007 में एयरेशन के जरिये नैनी झील को ‘डायलिसिस’ की तरह कृत्रिम ऑक्सीजन चढ़ाने वाले नैनीताल जिला विकास प्राधिकरण के परियोजना प्रबंधन चंद्रमौलि साह ने बताया कि लॉक डाउन की वजह से प्राधिकरण नैनी झील की सफाई नहीं कर पा रहा है। यहां तक कि नैनी झील के बीच में नौका ले जाकर झील की गुणवत्ता भी नहीं मापी जा रही है, फिर भी झील के किनारे किए गए ऐसे मापन के अनुसार झील में पारदर्शिता करीब पूर्व की करीब डेढ़ मीटर से बढ़कर 2.5 मीटर तक हो गई है। वहीं झील के पानी में ऑक्सीजन की मात्रा 7.5 के स्तर पर बनी हुई है।
नगर के पर्यावरणविद् डॉ. अजय रावत का कहना है कि नैनी झील की पारदर्शिता एवं सफाई में स्वतः सुधार हुआ है। उन्होंने दावा किया कि झील में पारदर्शिता पहले ऊपरी सतह से सात मीटर की गहराई तक स्थित एपीलिनियन तक ही थी, जबकि अब सात से नौ मीटर की गहराई पर स्थित थर्मोलाइन तक हो गई है और इस गहराई तक मछलियों का आवागमन भी हो गया है, जो कि पहले केवल एपीलिनियन में था।
इसके अलावा भी नैनी झील के किनारे ठंडे क्षेत्र की सड़क में इन दिनो मानवीय गतिविधियां घट जाने की वजह से गुलदार एवं उसके शावकों के साथ ही घुरल, काकड़, कलीज फीजेंट सहित अनेक पशु-पक्षी भी नजर आ रहे हैं। इसे भी नैनी झील एवं नगर की ईकोलॉजी में हुए परिवर्तन का परिणाम माना जा रहा है।