ऋषिकेश, कहते हैं कि हंसती खेलती, खिलखिलाती नदियां पहाड़ों से उतरकर मैदानों का रुख करती है तो कहीं ना कहीं आबादी का बोझ इसके साफ और निर्मल जल पर अपना असर दिखाना शुरू कर देता है। जी हां, हम बात कर रहे हैं पहाड़ी नदी रिस्पना की जो मसूरी की हसीन वादियों के छोटे से गांव से निकलकर देहरादून तक आते-आते अपना अस्तित्व खो देती है।
30 किलोमीटर के इस सफर में रिस्पना नदी आखिर क्यों मृतप्राय हो गई है? यह सवाल बार-बार पहाड़ बन कर सामने खड़ा हो जाता है। पर्यावरणविद और वनस्पति वैज्ञानिक प्रोफेसर आर.डी गौड भी इस बात से चिंतित है आखिर क्यों नदिया हमारे जीवन शैली का बोझ उठाते हुए बार-बार गंदे नाले में तब्दील होती जा रही है? क्या सरकार सिर्फ अनियोजित विकास को बढ़ावा देकर पहाड़ पर जीवन रक्षक नदी, खाले, झरने और स्रोतों को यूं ही खत्म होने देगी? या इनका पुनरुद्धार करके भविष्य में होने वाले जल संकट से जूझती आबादी को पेयजल मुहैया कराने की दिशा में ठोस कदम उठाएगी?
कुछ इसी चिंता को लेकर सेना के जवानों रिस्पना नदी के जीवन को बचाने के लिए भागीरथ प्रयास का बीड़ा उठाया है। पहाड़ो से खिलखिलाती रिस्पना नदी को देहरादून शहर में नाला हो चुकी नदी को सैना की ‘इको-टास्क फोर्स’ अब नया जीवन देगी। इको टास्क फोर्स के सीअो कर्नल हरी राज सिंह राणा के नेतृत्व में सेना के जवान राज्य सरकार की सहमति से रिस्पना नदी की साफ सफ़ाई और उसका फिर से विस्तार करने में जुटे। कर्नल हरिराज सिंह राणा का कहना है कि, “हमने सीएम साहब से बात करके इस प्रोजेक्ट को हाथ में लिया है, रिस्पना नदी के रिवाइव होने के लिए कम से कम चार-पांच साल का समय लगेगा और जब एक बार यह फिर से बहने लगेगी तब हम इसको स्टेट गवर्नमेंट के सुपुर्द कर देंगे। हम लोग इसके मुहाने पर ही अपना हेडक्वार्टर बनाएंगे और लगातार काम करेंगे। सेना के इस प्रयास से एक बार फिर रिस्पना के दिन बहुरने की उम्मीद बनी है, जो राज्य में दूसरी नदियों के लिए भी एक मील का पत्थर बनेगी।”