उत्तराखंड की मातृशक्ति को आत्मनिर्भर बना रहा है ये अनोखा प्रयास

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Tourists enjoying the hospitality of Ferhweh Fair Travel
Tourists enjoying the hospitality of Ferhweh Fair Travel

(चमोली) उत्तराखंड में जहां एक तरफ गांव के गांव खाली हो रहे है और लोग पलायन कर रहे हैं वहीं बहुत से लोग ऐसे भी है जो पलायन के खिलाफ जंग छेड़ रहे हैं।

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हमारी आज की कहानी भी ऐसे ही पूनम रावत हाह्न की है जिन्होंने पलायन को चुनौती देते हुए पहाड़ की महिलाओं के स्वाबलंबी बनाया है। फर्नवे फेयर ट्रेवल-अपलिफ्टिंग कम्यूनिटी महिलाओं के नेतृत्व में चलने वाला एक ऐसी स्वयं सेवी संस्थान है जो उत्तराखंड के दूर-दराज के गांवों में पर्यटन को विकसित करने के लिए काम कर रहा है। फर्नवे फेयर ट्रैवल और पीच एंड पीयर होम-स्टे ग्रामीण क्षेत्र के लोगों के विकास के लिए सस्टेनेबल पर्यटन की राह में काम कर रहा है।

फर्नवे फेयर ट्रेवल के बारे में और बात करते हुए पूनम रावत हाह्न हमें बताती हैं कि, “साल 2005 में, पूनम और उनके परिवार ने अपने पिता मेजर बी.एस. रावत की याद में बचन चैरिटेबल ट्रस्ट समिति के तहत अपनी बचत का उपयोग करके एक महिला आश्रय खोला। आज तक रावत परिवार ने किसी भी फंड के लिए आवेदन नहीं किया है। हमने महसूस किया कि हमारे क्षेत्र में कई युवा विधवाएँ और घरेलू हिंसा की शिकार महिलाएं हैं। इतनी कम्र उम्र में महिलाओं को इस तरह की जिंदगी से बाहर निकालने के लिए हमने इन्हें किसी पर आश्रित ना होने के लिए आत्मनिर्भर बनाने का फैसला किया।इसी सोच के साथ हमने साल 2015 में अपना पहला होम-स्टे शुरु किया। इस वक्त फर्नवे अलग-अलग क्षेत्रों में काम कर रहा हैं।”

उत्तराखंड के चमोली जिले में इस काम को शुरू करना पूनम के लिये आसान नही था। लेकिन महिलाओं के लिए स्वरोजगार के मौके पैदा करने की सोच के साथ वो आगे बढ़ी। पूनम रावत हाह्न औरतों को आत्मनिर्भर बनाने के लिए उन्हें अलग-अलग क्षेत्र में रोजगार देती है। साथ ही होमस्टे से होने वाले फायदे से वह जरुरतमंद स्कूल और बच्चों की मदद करती हैं। इस पहल से बाहर से आने वाले पर्यटकों को उत्तराखंड की संस्कृति से रुबरु होने का भी मौका मिलता है।

Poonam Rawat Hahne with her mother Tulsi Rawat
Poonam Rawat Hahne with her mother Tulsi Rawat

2015 में शुरुआत के साथ, फर्नवे फेयर ट्रैवल-अपलिफ्टिंग कम्यूनिटी ने गोपेश्वर में अपना पहला होम-स्टे प्रोजेक्ट लॉन्च किया। आगे बढ़ते हुए, पूनम ने अपने भाई के साथ मिलकर चोपता में फॉरेस्ट केबिन की शुरुआत की। इसके अलावा एक बड़े प्रोजेक्ट के अंर्तगत इको रिट्रीट और पर्माकल्चर फार्म चमोली में बनाया जा रहा है। साथ ही मंडल घाटी के 9 गांवों में होम स्टे बनाने की योजना पर भी काम चल रहा है। पिछले चार वर्षों से, पूनम की मां, तुलसी रावत ने पर्यटकों के लिए बेहतर होस्ट का काम किया है।महिला आश्रय के साथ-साथ उन्होंने होम-स्टे की देखभाल की है। जिसकी बदौलत उनके होमस्टे को इस साल आउटलुक ट्रैवलर द्वारा भारत के टॉप -5 जिम्मेदार होम-स्टे जीता का खिताब भी दिया है ।

एक छोटी शुरुआत के साथ इस वक्त फर्नवे फेयर ट्रेवल के साथ लगभग 35 लोग जुड़े हुए है। सैलानियों के लिए इनके पास बहुत सारी एक्टिविटी हैं। इनमे:

  • ट्रेकिंग
  • सॉफ्ट एडवेंचर
  • विलेज टूर
  • हैंडीक्राफ्ट मेकिंग प्रोग्राम्स
  • फेस्टिवल सेलिब्रेशन
  • कुकिंग
  • ऑर्गेनिक फार्मिंग, स्पिरिचुअल ट्रिप्स, योगा
  • फोटोग्राफी
  • एक्वाकल्चर और
  • वाइल्ड लाइफ स्पॉटिंग जैसे बहुत सारे विकल्प हैं।

फर्नवे फेयर ट्रेवल अपलिफ्टिंग कम्यूनिटी के लॉंच होने के चार सालों में यहां लगभग 1500 टूरिस्ट आ चुके हैं।

फौजी परिवार की पृष्ठभूमि से आने वाली पूनम किसी भी शहर में 3 साल से ज्यादा नहीं रही। कम उम्र से उन्होंने नई जगहों को एक्सप्लोर करना शुरु कर कर दिया था। पूनम को सफर करना पसंद है और वह हमेशा उस भारत की खोज में रहीं जो गांवों में बसता है। अपने राज्य उत्तराखंड से हमेशा जुड़ी रहनी वाली पूनम ने जब उत्तराखंड में विधवाओं और पलायन के मामलों की खतरनाक संख्या देखी तो उन्होंने उत्तराखंड में इन कार्यक्रमों को शुरु करने का फैसला किया।

भविष्य में अपनी योजनाओं के बारे में बात करते हुए पूनम कहती हैं कि “हम वर्तमान में चमोली मंडल में एक कम्यूनिटी डेवलेपमेंट सेंटर और इको रिट्रीट का निर्माण कर रहे हैं, जिसमें प्राकृतिक चीजों का इस्तेमाल किया जाएगा। यहां हम स्थानीय लोगों को काम पर रखेंगे और उन्हें ट्रेनिंग देंगे। सीडीसी में गांव में होने वाले कच्चे माल का उपयोग करके अलग-अलग उत्पादों को बनाने और उन्हें राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बाजार में देने की योजना बना रहे हैं जैसे कि आर्गनिक साबुन,स्क्रब, मोमबत्तियाँ, स्थानीय हस्तशिल्प, मसाले, ऑर्गेनिक प्रोडक्ट जो सीधे किसानों से लेकर बाजार में बेचे जाऐंगे।”

पूनम के इन प्रयासों से उन्होंने ना केवल रिर्वस पलायन के लिए एक मिसाल कायम की है बल्कि उत्तराखंड की मातृशक्ति को आत्मनिर्भर बना कर उन्हें जीने की नई उमंग दी है।