जंगलों में आग की सूचनाएं अब सीधे वन रक्षकों तक पहुंचेगी। भारतीय वन सर्वेक्षण (एफएसआइ) को देश के 11 राज्यों की वन बीटों की सीमाओं की स्पष्ट जानकारी मिल चुकी है। इसके साथ ही बड़ी संख्या में इन राज्यों के वन रक्षकों के मोबाइल नंबर भी लिए गए हैं। यानी अब जैसे ही आग की सूचना सैटेलाइट के माध्यम से एफएसआइ को मिलेगी, उसे तत्काल स्वचालित माध्यम से संबंधित बीट के वन रक्षक को भेज दिया जाएगा। यह जानकारी एफएसआई के डीजी डा.शैवाल दास गुप्ता ने दी है। एफएसआइ के महानिदेशक डॉ. शैवाल दासगुप्ता के मुताबिक अब तक जंगलों में आग की सूचना राज्यों के नोडल अधिकारी, मुख्य वन संरक्षक, प्रभागीय वनाधिकारी और रेंजर के माध्यम से वन रक्षक तक पहुंचती थी। इसकी वजह यह थी कि एफएसआइ के पास बीटों की सीमाओं की जानकारी नहीं थी। लिहाजा, सूचना को विभिन्न माध्यमों से सही स्थल तक पहुंचाने की मजबूरी थी। जिन राज्यों में फिलहाल बीटों की सीमाओं का डिजिटलाइजेशन नहीं हो पाया है, वहां रेंज या प्रभागीय वन प्रभाग स्तर पर सूचनाएं भेजी जा रही हैं।
इस श्रेणी में तीन राज्य शामिल हैं जबकि अन्य राज्यों में अभी जिला स्तरीय सूचना प्रणाली लागू है। महानिदेशक ने बताया कि तत्काल आग वाले क्षेत्र के स्टाफ को सूचना भेजने में मिली सफलता के चलते आग की घटनाओं पर तत्काल काबू पाना संभव हो पाएगा। इसमें उत्तराखंड, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, महाराष्ट्र, पंजाब, बिहार, हिमाचल प्रदेश, कर्नाटक, त्रिपुरा, झारखंड, तमिलनाडु आदि राज्य शामिल है।
एफएसआइ ने बताया कि उसके माध्यम से अभी देशभर के 2500 वन कार्मिकों के नंबरों पर आग की सूचना के एसएमएस भेजे जा रहे हैं। हालांकि, चिंता की बात यह कि उत्तराखंड जैसे 71 फीसद वन भूभाग वाले राज्य में अभी सिर्फ 20 नंबर ही भारतीय वन सर्वेक्षण की वेबसाइट पर पंजीकृत हो पाए हैं। अब तक एफएसआइ के पास सैटेलाइट के मॉडीज कैमरे से उपलब्ध होने वाली तस्वीरों से ही आग की जानकारी मिलती थी, जबकि अब एसएनपीपी (हाइ रेज्यूलेशन कैमरा) के माध्यम से भी आग का पता चलेगा। एफएसआइ के महानिदेशक डॉ.शैवाल दासगुप्ता ने बताया कि मॉडीज करीब 1000 मीटर वन क्षेत्र में आग के चित्र लेता है, वहीं एसएनपीपी 375 मीटर क्षेत्र में भी आग का पता लगाने में सक्षम है। इससे छोटे वन भूभाग पर लगी आग की घटनाएं भी स्पष्ट रूप में पकड़ में आ पाएंगी। यानी आग के अधिक से अधिक स्पॉट का पता लगा लिया जाएगा।