देवभूमि उत्तराखंड में परंपराओं औऱ रीति रिवाज़ो का खज़ाना भरा हुआ है। इन्ही परंपराओं में एक अनोखी परंपरा है “गाडू घडी”। टिहरी राज परिवार में भगवान बद्रीनाथ के मालिश और अभिषेक के लिए राजमहल में तेल निकाला जाता है। राजमहल में निकाला जाने वाला तिल का तेल कपाट खुलने पर बद्रीनाथ मंदिर में हर रोज इस्तेमाल होता है।
बुधवार 24 अप्रैल से भगवान बद्री विशाल के कपाट खुलने की परम्परा का श्री गणेश हो गया है। सदियों पुरानी गाडू घडी परम्परा के तहत टिहरी राजज परिवार की महिलाओं और अन्य महिलाओं द्वारा हाथों से तेल निकाला गया। इस तेल को घड़ों में भरकर बद्रीनाथ धाम के लिए रवाना किया गया। इसी तेल से 10 मई सुबह 5:30 बजे कपाट खुलने के बाद अगले छः महीने भगवान का श्रृंगार और पूजा अर्चना की जाऐगी।
परंपराए और संस्कृति का गहरा नाता होता है, और अगर आज के आधुनिक दौर मे भी गाडू घड़ी जीवित है तो यह बात अपने आप में अनूठी है। जी हां हम बात कर रहे हैं उत्तराखंड में टिहरी नरेश के नरेंदर नगर स्थित राजमहल की। जहाँ भगवान बद्रीनाथ के श्रृंगार और पूजा के लिए तिल का तेल निकलने की गाडू घडी परम्परा का आज भी निर्वहन हो रहा है। पीले वस्त्रो से सजी धजी यह सुहागिन महिलाएं राजमहल में रानी के साथ, तेल कलश को भरने के लिये तिलों को पीस कर उनका तेल निकालती है। यह परंपरा राज परिवार सदियों से निभाता आ रहा है। तेल कलश को भरने की लिये ये महिलाये पूरे दिन बिना कुछ खाए पिए मुह पर पीले रंग का कपडा बांध कर तेल निकालने का काम करती है। ये पूरा काम टिहरी की महारानी और राज परिवार से जुडी महिलाये के साथ सुहागन महिलाएं ह़ी करती है।
महारानी माला राज़ लक्ष्मी टिहरी मे बताया कि “सुबह से ही व्रत रख कर भगवान की सेवा के लिए दूर दराज के क्षेत्रो से आई ये सभी महिलाय किसी न किसी रूप से राज महल की इस परम्परा से जुडी हुई है। अपने हाथो से तिल को पीस कर उसका तेल निकाल कर बद्री भगवान की शीतनिद्रा से जागने के बाद रोज ही भगवान की मूर्ति की मालिश और अभिषेक के लिए काम आता है। इस परम्परा से जुड़ कर सभी जन्मो-जन्मो का पुण्य कमा लेती है और अपने को सौभाग्यशाली मानती है।”