कुमाऊं के पारंपरिक ऐपण की कला को जीवंत करती सविता

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(देहरादून) किसी भी राज्य की पहचान उसकी संस्कृति और उसकी परंपरा से होती है। उत्तराखंड के साथ भी कुछ ऐसा ही है। अगर हम उत्तराखंड के कुमाऊं क्षेत्र की तरफ जाते हैं तो एक चीज जो सबका ध्यान अपनी ओर आकर्षित करती है वो है ऐपण। ऐपण की कुमाऊं क्षेत्र में अलग ही महत्ता है और हमारी आज की कहानी भी एक ऐसी कलाकार की है जो इस परंपरा को लोगों के बीच लेकर आ रही है।

34 साल की सविता जोशी हल्द्वानी में पली-बढ़ी है। 2014 में डीएसबी कैंपस नैनीताल से बॉटनी में पीएच.डी के अलवा यूजीसी के सीनियर रिर्सच फैलो की तरह काम भी किया है। फिलहाल सविता गुड़गांव में अपने परिवार के साथ रहती है और फ्री लांसर रिसर्च पेपर रिव्यूयर की तरह काम करती हैं, इसके अलवा सविता के 15 से अधिक राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय रिर्सच पेपर पब्लिश हो चुके हैं।

डॉक्टरेट की उपाधि होने के बाद भी सविता अपनी संस्कृति और परंपरा से जुड़ी हुई हैं। सविता के बनाए हुए ऐपण की लोग ना केवल उत्तराखंड में बल्कि बाहर भी खूब सराहना करते हैं।बहुत कम उम्र से सविता अपने घरवालों खासकर अपनी मां और दादी के साथ मिलकर ऐपण बनाती थी और उन्ही से सविता ने यह कला सिखी है।

ऐपण की कला के बारे में और बात करते हुए सविता हमें बताती है कि, “इंस्टाग्राम पर सर्फिंग करते हुए मैंने देखा कि बहुत सारे कलाकार हैं जो अपने पारंपरिक लोकगीत और संस्कृति को बढ़ावा देने के लिए काम कर रहे हैं। ऐसे ही कुछ और कलाकार हैं, जो विशेष रूप से पारंपरिक तरीके से उंगली को ब्रश की तरह इस्तेमाल करते हैं और चावल के पेस्ट को पेंट की तरह इसेतमाल करते हैं। बहुत सारी जगहों पर मुझे उत्तराखंड की विरासत कम देखने को मिली और इसके अपनी ओर से आगे बढ़ाने के लिए मैंने इंस्टाग्राम हैंडल बनाया और ऐपण बनाना शुरु किए।”

सविता कहती हैं,” ऐण  की पारंपरिक जड़ों को करीब रखते हुए मैंने ऐपण बनाना शुरु किया। इस ऐपण को ना सिर्फ भारत में बल्कि विदेशो में खूब पसंद किया जा रहा। अब उत्तराखंड और अन्य राज्यों जैसे कि मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, पंजाब और पश्चिम बंगाल के लोग इस पारंपरिक कलाकृति में अपनी रुचि दिखा रहे हैं और अब मुझे इंस्टाग्राम और फेसबुक पेज के माध्यम से ऐपण के ऑर्डर मिल रहे हैं। मैंने कभी ऐसा नहीं सोचा था कि लोग ऐपण को इतना पसंद करेंगे।दूसरे राज्य जैसे गुजरात और महाराष्ट्र के कई हैंडिक्राफ्ट सप्लायर के फोन आ चुके जो अब मुझे लक्ष्मी पदचिह्न और ऐपण दीया बनाने के लिए संपर्क करते हैं क्योंकि वे इनसे कुछ कॉर्पोरेट गिफ्ट की तरह इस्तेमाल करना चाहते है।”

आपको बतादें कि ऐपण उत्तराखंड की महिलाओं के हाथों में विकसित की गई कला है। ऐपण का कुमाऊं क्षेत्र के धार्मिक मूल्यों से गहरा संबंध है।ऐपण की यह कला पीढ़ी दर पीढ़ी लोगों तक पहुंच रही है और कुमाऊं क्षेत्र के लगभग हर घर में यह कला आपको देखने को मिलेगी। ऐपण पारंपरिक रूप से एक घर के मुख्य दरवाजे, आंगन, तुलसी के पास और पूजा स्थलों पर  गेरू (लाल मिट्टी) और बिसवार (चावल का पेस्ट) का इस्तेमाल करके बनाया जाता है।

सविता ऐपण के अलग-अलग प्रोडक्ट जैसे कि ऐपण चौकी, लक्ष्मी पदचिह्न, नामकरण सूर्य चौकी, सरस्वती चौकी, ज्योकि पट्टी, शिवा चौकी, शिवशक्ति चौकी, जनेऊ चौकी आदि बनाती है। इसके अलावा जो लोग इन चित्रों से अपनी दीवार को सजाना चाहते हैं उनके लिए सविता ये डिजाईन आर्ट पेपर पर बनाती है। साथ ही ऐपण दिया,ऐपण कोस्टर्स, ऐपण ट्रे, ऐपण पॉट्स और प्लांटर्स, बुकमार्क, पूजा थाल और बहुत कुछ।

फिलहाल सविता अपने 2 साल की बेटी के साथ व्यस्त हूं, इसलिए ऐपण के लिए वर्कशॉप आयोजित नहीं कर पा रही लेकिन आने वाले समय में वह इस कला के प्रचार के लिए अलग-अलग जगहों पर वर्कशॉप करेंगी जिससे यह कला वो और लोगों में भी बाँट सके।

सविता के ऐपण की झलक आप इंस्टाग्राम पेज पर देख सकते हैंः Aipan