पहाड़ में भी मंडी बनाकर स्थानीय उत्पादकों को प्रोत्साहित करने की पहल रंग नहीं लाई। मंडी तो बना दी गई उसे शुरू कराने की सुध किसी को नहीं रही। दो करोड़ की लागत से बनी मंडी सफेद हाथी बनी हुई है। मंडी परिषद की योजना के तहत पर्वतीय क्षेत्रों में मिनी मंडियां बनाकर स्थानीय उत्पादकों को इससे लाभावित करना था। इसके लिए थल में मंडी स्वीकृत की गई। इसके पीछे थल, डीडीहाट, मुनस्यारी, बेरीनाग से उत्पादित होने वाली साग, सब्जी, फल और अनाज इस मंडी में पहुंचने थे। ताकि स्थानीय उत्पादकों को बिचौलियों से मुक्ति मिले और उत्पादक प्रेरित हो सकें। इसके लिए दो करोड़ की लागत से मंडी भवन और शेड सहित सभी कुछ तैयार किया गया। तीन वर्ष पूर्व तैयार मंडी अभी तक चालू नहीं हो सकी है। मंडी के दो गेटों में एक गेट पर ताला लटका है तो दूसरा गेट तार से बांधा गया है। जिसे खोल कर लोग परिसर में घुस रहे हैं। लावारिस जानवर भी परिसर में शरण लिए हुए हैं।
मंडी बनाने को लेकर किसानों को दिखाए गए सब्ज बाग टूट चुके हैं। थल के सबसे अच्छे क्षेत्र में बनी मंडी में आवारा जानवरों ने अपना निवास बनाया है। यहां पर बने भवन क्षतिग्रस्त होने लगे हैं। थल के सबसे अच्छे स्थल पर बनी यह मंडी किसानों को चिढ़ा रही है। सियासी दल चुनाव में इसे चुनावी मुद्दा बनाते हैं परंतु सत्ता मिलते ही किसानों के हितों के लिए बनी मंडी भुला दी जाती है। विशन सिंह चुफाल ने कहा कि थल मंडी के संबंध में सरकार से बात की जाएगी। जिस उद्देश्य के लिए मंडी बनाई गई थी उसे पूरा करने का प्रयास किया जाएगा। मंडी बनने से राम गंगा नदी घाटी के सब्जी और फल उत्पादकों को इसका लाभ मिले इसका प्रयास किया जाएगा।