बुग्यालों के मामले में हाईकोर्ट का दरवाजा खट-खटाएगी सरकार: खैरवाल

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(देहरादून) उत्तराखंड के प्रमुख बुग्याल पर्यटकों के आरक्षण का केंद्र रहे हैं, लेकिन उत्तराखंड उच्च न्यायालय द्वारा इन बुग्यालों में रात्रि विश्राम बंद करने से पर्यटन व्यवसायों को करोड़ों का नुकसान हो रहा है। इस बारे में सरकार उच्चतम न्यायालय का दरवाज खट-खटाएगी। केरल में आयी बाढ़ के कारण यह संभावना थी कि पर्यटक उत्तराखंड के बुग्यालों की ओर अधिक रुख करेगा। यहां उसके मन लुभाने के लिए बेदनी बुग्याल, पातर नचौनिया, गोंरसों, औली, रुद्रनाथ, नंदनकानन, सतोपंथ, पांडूसेरा, राताकोण, बागची, खादू-चमोली, हरकीदून, देवदामिनी, दयारा, केदारखर्क, तपोवन, कुश कल्याण-उत्तरकाशी, बर्मी, कसनी- रुद्रप्रयाग, पावली कांठा-टिहरी के बुग्याल काफी महत्वपूर्ण भूमिका रखते हैं।

पर्यटन विभाग की अपर सचिव और जीएमवीएन की प्रबंध निदेशक ज्योति नीरज खैरवाल का कहना है कि इसको लेकर विभाग सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खट-खटाने जा रहा है। पर्यावरण के जानकार एवं अनुसंधान संस्थान के पूर्व मुख्य कला अधिकारी ज्ञानेंद्र कुमार का कहना है कि पर्यावरण की क्षति को संतुलित किया जा सकता है। पर्यटनों के आगमन के बाद भी इसे रोका जा सकता है। इसमें शासन, प्रशासन की भूमिका महत्वपूर्ण है। कुमार मानते हैं कि उत्तराखंड के पर्यटन के लिए इन बुग्यालों में आने देना ही प्रदेश हित में होगा। बुग्यालों में पर्यटन को नियंत्रित किए जाने के नैनीताल हाईकोर्ट के आदेश के बाद बुग्यालों में पर्यटकों का रात्रि विश्राम पूरी तरह से बंद कर दिया गया है। इसे लेकर वन विभाग ने आदेश भी जारी कर दिया है। इन आदेशों से ट्रैकिंग व्यवसाय से जुड़े लोगों की रोज़ी रोटी का संकट खड़ा हो रहा है।

एक जनहित याचिका की सुनवाई करते हुए नैनीताल हाईकोर्ट ने राज्य के बुग्यालों में गेस्ट हाउस में पक्के निर्माण व्यावसायिक चारागाह को रोकने की मांग की थी। याचिका पर सुनवाई करते हुए कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति राजीव शर्मा और न्यायमूर्ति लोकपाल सिंह की खण्डपीठ ने राज्य के सभी बुग्यालों से तीन महीने के भीतर पक्के निर्माण हटाने के निर्देश के साथ ही प्रकृति, पर्यावरण और इकोलॉजी के संरक्षण के लिए छह हफ्ते के भीतर इको डेवलपमेंट कमेटी बनाने के निर्देश दिए थे।
हाेईकोर्ट के आदेशों के बाद उत्तराखण्ड के ट्रैकिंग और उससे जुड़े व्यवसायी बुरी तरह से प्रभावित हुए हैं। इस समय आने वाले महीनों के लिए बुकिंग की जाती। इस समय को ट्रैकिंग का पीक सीज़न माना जाता है। प्रदेश में ट्रेकर्स ट्रैक करने पहुंच रहे हैं लेकिन वन विभाग की तरफ से हाईकोर्ट के आदेश का हवाला देकर ट्रैकिंग की अनुमति नहीं दी जा रही है। एडवेंचर टूर ऑपरेटर्स एसोसिएशन ऑफ इण्डिया ने इस सीज लगभग 500 करोड़ रुपये के नुकसान का आंकलन किया है। जीएमवीएन और वन महकमे को इस बार भारी नुक़सान हुआ है। गढ़वाल मण्डल विकास निगम के सूत्रों की मानें तो इस सीज़न में 50 लाख का नुकसान उन्हें अभी तक हुआ है।